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________________ * 238. * श्री बृहत्संग्रहणीरत्न-हिन्दी भाषांतर . ऐसे स्वच्छ पुदगलोंकी बनी है। अथवा उस उस आकारमें रचित शुद्धआत्मप्रदेश जैसे कि चक्षुमें पुतली, कानमें कानका परदा आदि / यह आभ्यन्तर निवृत्ति ही सच्ची इन्द्रियाँ है। विषय ग्रहण शक्ति इसमें होती ही है। यहाँ एक बात स्पष्ट समझाई कि, इन्द्रियोंके बाह्य आकार भिन्न भिन्न प्रकारके हो सकते हैं, जिसे बाह्य निवृत्तिसे पहचाना जाता है। परंतु अंदरके भागमें रही, पुद्गलोंकी रचनाके रूपमें रही वास्तविक पांचों इन्द्रियोंकी रचना, तमाम जीवोंमें एक समान ही निश्चित आकारोंवाली ही है, लेकिन भिन्न भिन्न नहीं है। आगे इन्द्रियोंके आकार जो कहे जाएँगे वे भी इस आभ्यन्तर निवृत्तिके आधार पर ही। और इसी लिए चारों इन्द्रियोंमें दोनों निवृत्तियाँ घटित बनती हैं, लेकिन स्पर्शेन्द्रियमें दो भेद ही घटित हैं। चारों इन्द्रियाँ देहावयव रूपमें और स्पर्शेन्द्रिय देहाकार स्वरूपमें ही समझना। . .. . बाह्य निवृत्तिको तलवार मानें, तो स्वच्छ पुद्गलके समूहरूप आभ्यन्तर निवृत्तिको उसी तलवारकी धार रूप समझना चाहिए / वस्तुतः तलवार या धार एक दूसरेसे भिन्न नहीं है फिर भी कार्य करनेकी उपयोगिता दोनोंमें भिन्न है। इस दृष्टिसे यह भेद है फिर भी दोनों के सहयोग से ही तलवारका कार्य होता है। इस तरह यहाँ भी दोनों के सहयोगसे ही विषयज्ञान होता है। दोनों प्रकारकी उपकरणेन्द्रियाँ वास्तविक रूपसे देखें तो निवृत्ति और उपकरणमें खास सफावत नहीं लगता। लेकिन आभ्यन्तर निवृत्तिको पुद्गलरूप मानें तो आभ्यन्तर उपकरणको उन इन्द्रियों के पुद्गलमें रही शक्तिरूपमें समझना चाहिए। दोनों प्रकारकी निवृत्तिको उपकार करे उन्हें उपकरण इन्द्रियाँ कही जाती हैं। ये उपकरणेन्द्रियाँ अर्थात् इन्द्रियोंके अपने विषयोंका अर्थबोध करानेवाली एक प्रकारकी सहायक या उपकारक शक्ति / इसके भी बाह्य आभ्यन्तर दो भेद हैं। 'बाह्य उपकरण' अर्थात् इन्द्रियोंके बाह्य आकारकी स्वस्थ रचना और 'आभ्यन्तर उपकरण' अर्थात् आभ्यन्तर निवृत्तिके पुद्गलोंमें रही जो शक्ति विशेष वह / बाह्य उपकरण आभ्यन्तर निवृत्तिकी पुद्गल रचनाका उपकारक है। और आभ्यन्तर उपकरण आभ्यन्तर निवृत्तिकी पुद्गल शक्तिका उपकारक है / शायद आभ्यन्तर निवृत्ति हो लेकिन उसमेंसे विषयबोध करानेवाली शक्ति नष्ट हो गई हो तो आभ्यन्तर निवृत्तिकी हाजिरी 532. यह अभिप्राय पन्नवणा सूत्रका है।
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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