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________________ . 212. * श्री बृहत्संग्रहणीरत्न-हिन्दी भाषांतर * धातुरूपमें परिणत वैसे सारभूत पुद्गलोंका जैल जैसा। खुराकमेंसे निष्पन्न होता प्रवाही रस / इस रसमेंसे ही रुधिर (खून-लहू ) मांस आदि सात धातुएँ बनती हैं और यह कार्य अभी जिसकी व्याख्या करनी है उस शरीर पर्याप्ति द्वारा होता है। - ऊपरकी व्याख्या वास्तवमें तो मात्र औदारिक देहकी आहार पर्याप्तिको ही लागू पड़ती है लेकिन वैक्रिय या आहारक देहकी आहार पर्याप्तिको लागू नहीं पड़ती / क्योंकि इन दो शरीरोंमें विष्टा, मूत्र और सात धातुएँ होती ही नहीं। यह फक्त औदारिक शरीरमें ही होती हैं / अतः इसका सर्वसामान्य अर्थ इस तरह होता है 'ग्रहण किये आहारमेंसे शरीर रच सके वैसी योग्यतावाले आहारको शरीर रच सके वैसी योग्यतावाला करे और शरीर रचनामें उपयोगी न हो सके वैसी अयोग्यतावाले आहारको उससे अलग कर दे' उसका नाम 'आहार पर्याप्ति' / ___ इस प्रकारका अर्थ तीनों शरीरकी आहार पर्याप्तिमें घटेगा / यह पर्याप्ति एक ही समयमें पूर्ण होती है / 2. शरीर पर्याप्ति-जीव पुद्गल समूहमेंसे प्राप्त हुई जिस शक्तिसे औदारिक, वैक्रिय और आहारक शरीरके योग्य रसीभूत-रसरूपमें बने आहारके सूक्ष्म पुद्गलों को सात धातु रूपमें अथवा शरीर रूपमें यथायोग्यपनसे परिणत करता हैं वह इस शरीर शक्ति (पर्याप्ति )के प्रभावसे ही। सात धातुओंसे शरीरके अंदर रहे रस, रुधिर, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा और शुक्र (वीर्य) ये सात वस्तुएँ समझना / रस अर्थात् खाई हुई खुराक पेटमें जाने पर उसमें से रस बने-मोटे प्रवाही रूपमें बने, रसरूपमें बने आहारमेंसे (सात धातु प्रायोग्य उन पुद्गलोंमेंसे ) लहू बनता है, लहूमेंसे मांस और उसमेंसे मेद ( चरबी) और उसमें से अस्थि अर्थात् हड्डियाँ बंधती हैं, फिर उसमें से मज्जा बननेका कार्य शुरू होता है और अंतमें शुक्र (वीर्य) नामकी धातुका निर्माण होता है। तात्पर्य यह कि खाई हुई खुराकमेंसे ही वह पर्याप्ति उपरोक्त सात धातुओं-द्रव्योंको बनाती है। यह औदारिक देह सात धातुओं से बनी है और इसलिए शरीरकी गति, प्रगति, वृद्धि-पोषण, रक्षणादिकमें उपयोगी बनते है। . 507. प्रथम जल प्रवाही रस हो वह रस धातुकी प्रारंभिक अवस्था है / अतः उस अपक्व रसको रसधातु रूप न समझना / वह तो उसके बाद तैयार होता है / 508. रस, रुधिर, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा ( अस्थिके अंदर रहा चीकना पदार्थ) और वीर्य, ये सातों धातुके रूपमें परिचित होनेसे ये सात धातुएँ कहलाती हैं / मूल वैक्रिय शरीरमें ये सात धातुएँ नहीं होतीं। उत्तर क्रियमें अन्तिम धानुमें विकल्प संभवित हो सके / आहारक शरीर तो सातों धातुओंसे रहित होता है।
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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