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________________ .172. * श्री बृहत्संग्रहणीरत्न-हिन्दी भाषांतर * सातवीं इन दोनों नरक पृथ्वियोंमें शीतवेदनाका अनुभव करनेवाले नारकोंकी उष्णयोनि है और इन शीत योनिवाले नारकोंकी वेदना अत्यन्त दुःसह है, और उष्णयोनिकी वेदनाका अनुभव करनेवाले नारकोंकी शीत योनि है। ये नारको तीव्र असह्य उष्णवेदनाका अनुः भव करते हैं। ..यहाँ प्रतिकूल कर्मोदयसे योनिके प्रकारसे उलटा ही वेदका. क्रम समझाया है / कुछ आचार्यों आद्यकी तीन पृथ्वीमें उप्णयोनि, चौथीमें शीत और उष्ण दो और अंतिम तीनोंमें एक शीतयोनि कहते हैं। इस मतको उपेक्षणीय माना है। . . साथ ही तमाम देवोंकी तथा गर्भज तिर्यच, पंचेन्द्रिय और मनुष्योंकी मिश्र अर्थात् शीतोष्णरूप स्वभाववाली योनि है, क्योंकि उनके उपपात क्षेत्रो. वैसे ही स्पर्शवाले हैं। तेउकायकी केवल उप्णयोनि स्पष्ट हैं। शेष पृथ्वी, अप, वायु, वनस्पति, विकलेन्द्रिय, संमूच्छिम तिर्यच पंचेन्द्रिय तथा मनुष्योंकी तीनों प्रकारकी हैं अर्थात् उनमें अमुक शीतयोनि, अमुक उष्ण तथा अमुक मिश्रयोनियाँ हैं। [ 324 ]. : अवतरण-अब मनुष्यकी स्त्रीको योनिका बाह्य ( ऊपरका ) आकार भिन्न भिन्न जीवाश्रयी कैसा कैसा होता है यह कहते हैं। हयगम्भ संखवत्ता, जोणी कुम्मुन्नयाइ जायंति / , अरिहहरिचकिरामा, वंसीपत्ताइ सेसनरा // 325 // गाथार्थ-शंखावर्ता योनि वह हतगर्भा है। अरिहंत, चक्री, बलदेव, वासुदेव, कूर्मोन्नतामें उत्पन्न होते हैं और अवशेष नरो-मनुष्यो, वंशीपत्रामें उत्पन्न होते हैं। // 325 // विशेषार्थ-मनुष्योंकी बाह्य लिंगाकाररूप योनि तीन प्रकारसे है। 1. शंखावर्ता योनि, 2. कूर्मोन्नता, 3. वंशीपत्रा। शंखावर्ता-यह शंख जैसी भ्रमीवाली होती है अर्थात् इस योनिमें शंख जैसे आवर्त-आंटे होनेसे शंखावर्ता कहलाती है। यह योनि निश्चयसे 'हतगर्भा' होती है, अतः इस योनिमें जीव उत्पन्न होता है और देहरचना भी करती है, लेकिन अंतमें अंदरकी अत्यन्त गरमीके कारण शरीर नष्ट हो जाता है और जीव दूसरी जगह चला जाता है, जिसे गर्भहत हुआ कहा जाता है। कभी भी वह गर्भ शरीरकी संपूर्ण रचना करके माताके गर्भमें से बाहर आकार जन्मधारी बने वैसा होता ही नहीं है, क्योंकि शंखावर्त 473. दिगम्बर तत्त्वार्थ-राजवार्तिकके मतसे कुछ देवोंकी शीत और कुछकी उष्ण है।..
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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