SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 559
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ * प्रमाणांगुलकी व्याख्या और अंगुल संबंधी चर्चा . . . 163 . होनेके कारण 168 उत्सेधांगुलको दो से बटा करनेपर अर्थात् उसका आधा करनेसे 84 स्वात्मांगुल श्री वीरका शरीर होता है तो फिर भगवान स्वात्मांगुलसे 108 अंगुल और उ० से० 216 अंगुल ऊँचे थे ऐसा दूसरे लोग क्यों कहते है ? और अगर उनका यह कथन यथार्थ हो तो वीर प्रभुकी सात हाथकी ऊँचाई किस तरह होगी ? क्योंकि 'द्विगुण उत्सेधांगुलसे वीरका एक आत्मांगुल' होता होनेसे 108 आन्मांगुलके उत्सेधांगुल 216 होंगे / इनके हाथ बनाने को [24 अंगुलका एक हाथ होने से 24 अंगुलसे वटा करनेसे नौ हाथ प्रमाण श्री वीरकी काया होगी, और यह कायाप्रमाण यथोक्त अंगुलसे विसंवादी होनेके कारण कोई सम्मत नहीं है / और 108 स्वात्मांगुल लेनेसे 'उस्सेहंगुलदुगुणं' इत्यादि कथन असत्य होता है, तो 108 स्वात्मांगुलका समाधान क्या ? यह शंका जिनके मतसे श्री महावीर 108 अंगुल ऊँचे हैं ऐसा कहनेवालोंकी हैं, क्योंकि 108 आत्मांगुलके कथनसे गाथाका नियम निभता नहीं है / 3. तृतीय शंका–साथ ही जो लोग श्री वीरको स्वात्मांगुलसे 120 अंगुल मानते हैं, उनके मतसे 'दो उत्सेधांगुलसे एक वीरात्मांगुल' यह नियम कैसे निभेगा ! . इस तरह तीन शंकाएँ उपस्थित हुई / एक तो वीरप्रभुके 108 आत्मांगुली अनुसार वीर प्रभुसे 'भरतचक्री 500 गुने' होते हैं वह, दूसरी श्री वीरप्रभुको स्वात्मांगुलसे 108 अंगुल ऊँचे कहते हैं वह / और तीसरी प्रभु श्री वीरको 120 आत्मांगुलसे कहते हैं वह / यहाँ श्री वीरको एकमतने 108 आत्मांगुल (216 उ०) कहा, अतः वास्तवमें प्रथम 500 गुने भरत बडे' की शंका हुई, क्योंकि 108 प्रमाण लेनेसे 'उस्सेहंगुलदुगुणं' यह नियम निभता नहीं है। हमें इस कथनकी पुष्टि के लिए नियम तो निभाना है। और जो लोग वीर को 120 आत्मांगुलीय कहते हैं उनके मतसे एक रीतसे समचतुष्क क्षेत्रफलके हिसाबसे, और 84 आत्मांगुल प्रमाण वीर कहलाते हैं वह, इन दोनों मतसे उस्सेहंगुल' कथन घटित होता है / मात्र १०८का कथन अलग पड़ता है, अतः उसी बात अब सोचें / . प्रथम शंका निरास-पूर्वोक्त शंकामें एक हजार उत्सेधांगुलमें एक प्रमाणांगुल कहा और अंगुल को उसी भरत का आत्मांगुल कहा वह तो मानो योग्य है / परंतु उक्त शंकामें “श्रेष्ठ पुरुष स्वात्मांगुलसे 108 अंगुल ऊँचे होते हैं और इस वचनानुसारसे
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy