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________________ * 162 * * श्री बृहत्संग्रहणीरत्न-हिन्दी भाषांतर * वर्तीका था, अतः एक दूसरी वस्तु सिद्ध हुई कि श्री ऋषभदेव या भरतका आत्मांगुल वही प्रमाणांगुल भी होता था / लेकिन यह मेल उसी कालमें देखनेमें आता है, लेकिन उसके बादके कालके लिए नहीं। फिर तो आत्मांगुल तथा प्रमाणांगुलका मेल नहीं मिलता। अतः आत्मांगुलप्रमाण हमेशा अनियमित होता है। जब कि प्रमाणांगुल प्रमाण, उसकी व्याख्या अनुसार हमेशा नियत ही है। ___* यहाँ अंगुल विषयक कुछ चर्चा उपयोगी होनेसे दी गई है। - 1. प्रथम शंका-उत्सेधांगुलसे प्रमाणांगुल हजारगुना है, और यह हजारगुना प्रमाणांगुलमान, उस भरतचक्रीके एक आत्मांगुल. बराबर कहा जाता है। इससे भरतचक्री श्री महावीरस्वामी से पांचसौ गुना बड़े शरीरवाले होंगे। क्योंकि ‘श्रेष्ठ पुरुषो स्वात्मांगुलसे 108 अंगुल ऊँचे होते हैं ' इस वचनसे भरतचक्री भी आत्मांगुलसे 108 अंगुल ऊँचे हुए। इन हजारगुने उत्सेधांगुलसे एक प्रमाणांगुल-वही भरतचक्रीका स्वात्मांगुल है, जो बात पहले कह गये / अतः भरतचक्रीके एक स्वात्मांगुलके हजार उत्सेधांगुल तो 108 स्वात्मांगुलके उत्सेधांगुल कितने ? तो त्रिराशिगणितके हिसाबसे १०८०००-एक लाख आठ हजार इतने भरतशरीरके उत्सेधांगुल आए / अब भगवान वर्धमानस्वामी जिनके मतसे उत्सेधांगुलकी ही अपेक्षासे 216 अंगुल [ और आत्मांगुल 108] थे उनके मतसे ही 108000 को बटा करने पर, महावीरकी अपेक्षासे भरतचक्री पांचसौ गुने बड़े, अथवा तो भरतकी अपेक्षासे श्री महावीर पाँचसौवें अंशमें छोटे बनते हैं। ये 500 गुने बड़े या उतने अंशमें छोटी श्री वर्धमान प्रभु की देह किसीको इष्ट नहीं है, क्योंकि महावीरकी कायाके मापकी अपेक्षासे भरत 400 गुने ही बड़े अथवा उनसे श्री महावीर चारसौवें अंशमें छोटे होने चाहिए, और होते हैं 500 गुने बड़े इसका क्या कारण ? [ यह 500 गुनापनकी प्रथम शंका ] 2. दूसरी शंका-अब उस्सहंगुलदुगुणं वीरस्सायंगुलं भणियं' इस गाथाके उत्तरार्धचरणसे उत्सेधांगुलसे द्विगुण वीरपरमात्माका स्वात्मांगुल [अपना अंगुल] कहा है, तो यहाँ ऊपरकी शंकामें श्री महावीर महाराजा को 108 अंगुल उँचे कहे वैसा कैसे ठीक होगा ? क्योंकि उक्त गाथाके अर्थानुसार भगवान स्वात्मांगुलसे 84 और उत्सेधांगुलसे 168 अंगुल होते हैं। वह इस तरह-भगवान स्वयं उत्सेधांगुलसे प्राप्त होती सात हाथकी [ स्वात्मांगुलसे 3 // ]. कायावाले थे, अब 24 अंगुलका एक हाथ होता होनेसे, सात हाथके अंगुल गिननेसे [7424=168] अंगुल आए। ऐसे दो उत्सेधांगुलसे एक वीरविभुका आत्मांगुलः .
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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