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________________ * अंगुलका प्रकार और माप पद्धति. सही ? नहीं / इस तरह लिखे तो लोगोंको अपने हाथका हिसाब मन पर सतत वर्तित होनेसे यह गिनती भ्रमोत्पादक हो जाए / अतः उस उस समयके लोगोंके (अपने) आत्मांगुलसे माप कर उसी तरह उसकी प्रसिद्धि हो सके। और इसके लिए अंगुल किसका पसंद करे ? हर किसीका ? तो नहीं, क्योंकि एक ही समयके लोगोंमें भी अंगुलकी दीर्घताका अल्पांशमें न्यूनाधिकत्व होता है, अतः उस कालमें सशक्त, नीरोगी और लक्षणोंसे जो पुरुष श्रेष्ठ मान्य हो उसका माप लेनेका, क्योंकि वही सच्चा-बराबर अंगुल होता है। उसके आधार पर ही अंगुल, पाद, बित्ता, हाथ यावत् योजन तकके मापो प्रवर्तमान होते हैं / उस कालमें श्री ऋषभदेवस्वामी या भरतचक्रवर्ती युगश्रेष्ठ पुरुष समान गिने जाते थे, इसलिए उनका अंगुल ग्रहण किया गया है / उनका अंगुल ही प्रमाणांगुल भी निश्चित हुआ है, क्योंकि वह अंगुल उत्सेधांगुलसे चारसौ गुना दीर्घ है / ___अब इस युगश्रेष्ठ व्यक्ति के अंगुलानुसारी हाथके मापसे 200 उत्सेधांगुलवाला कुआँ कितने हाथका गिना जाए ! तो बराबर 12 हाथका गिना जाए। और उसी रीतसे प्रसिद्ध किया जाए / और इस रीतका व्यवहार ही अनुकूल, उचित तथा माफिक रहे और ऐसा व्यवहार ही लोकमान्य बने / 1. अब उत्सेधांगुल किसे कहा जाए ? उत्सेध अर्थात् ( परमाणुसे प्रारंभ करके ) क्रमशः ऊर्ध्ववृद्धि द्वारा प्राप्त होता अंगुल / यह किस तरह वृद्धि होने पर प्राप्त होता है, यह बात अब पीछेकी 316 और 317 वी गाथामें कहेंगे। 2. उत्सेधांगुलसे क्या वस्तु मापी जाए ? देव आदि जीवोंके शरीरोंका प्रमाण शास्त्रमें जो कहा है वह इस अंगुलके हिसाबसे ही समझना। ... 3. प्रमाणांगुल किसे कहा जाए ? प्रमाणांगुल शब्दका अर्थ क्या ? युगकी आदिमें हुए श्री ऋषभदेव भगवान अथवा तो भरतचक्रवर्ती जिसमें प्रमाण रूप है और इसलिए उनका जो अंगुल वह प्रमाणांगुल कहलाता है। यह अंगुल कितना बड़ा होता है ? इसके लिए (गाथा 318 अनुसार) बताया है कि, उत्सेधांगुलसे चारसौ गुना लंबा और मात्र अढाई गुना अथवा 2 / / उत्सेधांगुल चौडा, इसे 'प्रमाणांगुल' कहा जाता है। श्रीऋषभदेव भगवानका तथा भरतचक्रीका अंगुल इतना ही था। जिनभद्रीया संग्रहणी (गा० 350) आदि स्थल पर उत्सेधांगुलसे हजार गुना प्रमाणांगुल 457. भगवान उत्सेधांगुलसे 500 धनुष ऊँचे थे और आत्मांगुलसे 120 अंगुल ऊँचे थे / 500 ध० के अंगुल 48 हजार होते हैं। उसे 120 आत्मांगुलसे बटा करें तो 400 उत्सेधांगुलका 1 ऋषभांगुल आ जाए।
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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