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________________ 155 * चारों गति आश्रयी वेदकी व्याख्या और अंगुलका प्रकार * विशेषार्थ--सुगम हैं / [ 312 ] // अथ सर्वसाधारण अधिकार // अवतरण-अब चारों गति आश्रयी वेदकी व्याख्या कहते हुए, किसे किसे क्या / क्या वेद हो ? इसे कहते हैं / देवा असंख नरतिरि, इत्थी'वेअ गब्भनरतिरिआ / संखाउआ तिवेआ, नपुंसगा नारयाईआ // 313 // गाथार्थ-देव तथा असंख्यवर्षके आयुष्यवाले [ युगलिक ] मनुष्य-तिर्यंचोंमें स्त्रीवेद और पुरुषवेद इस प्रकार दोनों वेद हैं, साथ ही संख्यवर्षके आयुष्यवाले गर्भज मनुष्य और तिर्यच स्त्री, पुरुष और नपुंसक इस तरह तीन वेदवाले होते हैं। तथा नारक और 'आइ' शब्दसे एकेन्द्रिय, विकलेन्द्रिय, संमूच्छिम तिर्यंच, मनुष्य ये सर्व एक नपुंसक वेदवाले ही होते हैं / // 313 // ___ विशेषार्थ-वेद यह पुरुषको स्त्री तथा स्त्रीको पुरुष विषयक संबंधकी अभिलाषारूप, देहाकृतिरूप तथा नेपथ्यरूप [ नाटक करनेवालेकी अपेक्षासे ] इस तरह तीन प्रकारका है। शेष अधिक व्याख्या देवद्वारमें कही है / [ 313 ] ...' अवतरण-पूर्व कही गई वस्तुएँ, देह, पृथ्वियाँ, विमानादिकका माप किस किस अंगुलसे नापा जाता हैं ! यह कहते हैं / आयंगुलेण वत्थु, सरीरमुस्सेहअंगुलेण तहा / नगपुढविविमाणाई, मिणसु पमाणंगुलेगतु // 314 // - गाथार्थ-आत्मांगुलसे वास्तु [अर्थात् कूप-तालाबादि], उत्सेधांगुलसे जीवोंके शरीर और प्रमाणांगलसे पर्वत, पृथ्वी, विमानादि नापे जाते हैं। / / 314 // विशेषार्थ-प्रथम आत्मांगुल अर्थात् क्या ? तो आत्मांगुलका शब्दार्थ-अपना अंगुल यह / अपना अर्थात् किसका ? तो जिस जिस कालमें (उस उस समयकी अपेक्षासे) शास्त्रमान्य ऊँचाईसे जो जो पुरुष प्रमाणोपेत गिने जाते हों, उनका आत्मीय-अपना जो अंगुल उसे ही यहाँ आत्मांगुल समझना / और वह उत्तम पुरुषोंके अंगुलके मापसे निर्णयभूत होती वस्तुएँ आत्मांगुलके प्रमाणवाली गिनी जाती हैं / जिस तरह भरत-सगरचक्रीके समयमें भरत तथा सगरके आत्मांगुलसे आगे कही
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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