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________________ असांव्यवहारिक जीवका मान अनंत जीव किस तरह समा जाए ? ऐसी शंका होती है, परंतु जिस तरह लोहेके गोलेमें अग्नि, एक कमरेमें वर्तित दीपकके तेजमें अन्य सैकडों दीपकका तेज, एक तोले पारेमें 100 तोले सोनेके औषधिबलका समावेश इत्यादि रूपी पदार्थका अवगाहन (प्रवेशसंक्रान्त ) होता है, वैसे एक, दो यावत् अनंत जीवो भी एक दूसरेमें प्रवेश करके-संक्रमण करके एक ही शरीरमें समान अवगाहनामें रहें, उसमें द्रव्यों के परिणाम-स्वभावकी विचित्रता देखने पर कुछ मी आश्चर्य नहीं है / एक शरीरमें रहे अनंत निगोदके जीव अव्यक्त ( अस्पष्ट) वेदनाका जो अनुभव करते हैं वह सातवीं नरक पृथ्वीसे भी अनंतगुनी दुःखदायक है। भले प्रकटरूपमें वेदना नरककी है किन्तु अप्रकटरूपमें तो इन जीवोंकी ही वेदना बढ जाती है। इस निगोदकी 37 प्रकारसे व्याख्या होती है जो श्री लोकप्रकाश ग्रन्थके तीसरे सर्गसे जाने / - इस निगोदका संस्थान सामान्यतः हुंडक है, परंतु वास्तवमें तो अनियमित आकारका है। निगोदका देहमान अंगुलके असंख्यातवें भागका है। निगोदके जीव संघयण रहित हैं। बादर निगोदका किंचित् अधिक स्वरूप जीवके 563 भेदके वर्णनमें से देखना / निगोद गोलक, उत्कृष्ट पद, जघन्य पद तथा समावगाही-विषमावगाहीपन तथा अवगाहनादि सर्व स्वरूप निगोद छत्तीसी तथा आगमशास्त्रोंमें से देखें / [301] अवतरण-असांव्यवहारिक जीवो कितने हैं ! उसका मान कहते हैं / . अत्थि अणंता जीवा, जेहिं न पत्तो तसाइपरिणामो / उप्पज्जति चयंति य, पुणोवि तत्थेव तत्थेव // 302 // ... गाथार्थ-ऐसे अनंत जीव हैं कि जो जीव सादिक लब्धिपरिणामको पाये नहीं है, क्योंकि वे (असांव्यवहारिक जीव) वहीं पर बारबार उत्पन्न होते हैं तथा (बारबार) मरते हैं। // 302 // विशेषार्थ-पूर्व गाथामें इसका स्वरूप कहा गया है कि जो जीव कदापि सूक्ष्म वनस्पतिपन वय॑ सूक्ष्म पृथ्वीकायादि, वादर निगोद-पृथ्वीकायादिपन पाये ही नहीं हैं, परंतु सूक्ष्म निगोदमें ही पुनः पुनः जन्म-मरण करते हैं, वैसे अव्यवहारराशिवाले अनंतानंत हैं / [302] अवतरण-अब प्रत्येक वनस्पतिमें अनंतकायका संभव कब हो ? बृ. सं. 19
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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