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________________ * निगोदका गोलेका स्वरुप . तवाँ भाग ही एक एक समयमें मरता है / ( च्यवित होता है ) और पुनः उसी समय पर अनंत जीवात्मक एक असंख्यातवाँ भाग परभवमेंसे आकर उत्पन्न होता है / [ एक निगोद में अनन्ता जीव च्यवन-उत्पत्तिमें प्राप्त होते हैं तो सर्व निगोदोंकी बात करें तो तो पूछना ही क्या ? ] इस तरह प्रतिसमय एक एक असंख्यांश घटते घटते विवक्षित निगोदके सर्व जीवो मात्र अन्तर्मुहूर्तमें ही परावर्तन पाते हैं, जिससे अन्तर्मुहूर्त व्यतीत होने पर दूसरे समय पर देखें तो विवक्षित निगोदोंमें सर्व जीव नये ही आए होते हैं, और पूर्वका एक भी जीव विद्यमान नहीं होता; इस प्रकार जैसे एक निगोद अन्तर्मुहूर्त मात्रमें सर्वथा परावर्तन पावे वैसे जगतकी हरेक निगोद मी अन्तर्महुर्त मात्रामें परावर्तन पाती है, इस तरह सदाकाल निगोद प्रत्येक अन्तर्मुहूर्तमें सर्वथा नई नई उत्पन्न होती हैं। परंतु वह निगोद कभी भी जीवरहित नहीं होती और इसी लिए इन जीवोंका जन्ममरणका विरहकाल भी नहीं होता / [299-300] ___ अवतरण-निगोद गोलकरुप है; तो उस गोलेकी संख्या कितनी? आदि स्वरूपके बारेमें कहते हैं / गोला य असंखिज्जा, अस्संखनिगोअओ हवइ गोलो / एक्ककम्मि निगोए, अणंतजीवा मुणेयव्वा // 301 // - गाथार्थ—गोले असंख्यात हैं, असंख्य-असंख्य निगोदोंका एक गोला होता है और एक एक निगोदमें अनंता जीव जाने // 301 / / विशेषार्थ-समग्र लोकाकाशमें गोले भरे होनेसे निगोदके सर्व गोले असंख्यात हैं। एक एक निगोदके गोले में निगोदिये जीवके साधारण शरीर असंख्य असंख्य हैं, [ समावगाही असंख्य निगोदोंका नाम ही गोला है ] साथ ही एक एक निगोदमें ज्ञानी महर्षियोंने अनंत अनंत जीव कहे हैं, इस एक एक निगोदाश्रयी जीवो तीनों कालके सिद्धके जीवोंसे अनंतगुने आज हैं और अनंतकाल जाने पर भी अनंतगुने ही रहनेवाले हैं। जिसके लिए कहा हैं कि 'जइआइ होइ पुच्छा जिणाणमग्गंमि उत्तर तइया / इक्कस्सय निगोयस्स अणंतभागो अ सिद्धिगओ // 1 // स्पष्ट है। इसीलिए कहा है कि ... “घटे न राशि निगोदकी, बढे न सिद्ध अनंत / " . पुद्गलोंसे सर्व लोक जैसे व्याप्त हैं वैसे जीवोंसे भी यह लोक सर्वत्र व्याप्त है अर्थात् निगोदादि सूक्ष्म एकेन्द्रिय जीव अंजनचूर्णसे भरी डिवियाकी तरह ठोस ठांस कर .: 445. पाठां निगोयगोलओ भणिओ /
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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