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________________ सेरिसामंडन श्री लोढण (सेरिसा) पार्श्वनाथाय नमः / // मनुष्यगतिके अधिकार प्रसंग पर परिशिष्ट सं-९ // इस ग्रन्थमें देव, नरक, मनुष्य और तिर्यच इन चार गति और पंचमगति मोक्षका और उसके लिए उपयोगी अनेक विषयोंका वर्णन किया है, उसमें सर्वप्रथम ऊर्ध्व-अधोस्थानमें रहे देवलोकका वर्णन किया, जिसमें प्रासंगिक खगोल विषयक हकीकत भी बताई। तत्पश्चात् अधोवर्ती देवलोकके साथ ही शुरु हुई नरकगतिका वर्णन भी किया / अब तिर्छालोकवर्ती रही मनुष्यगतिकी कतिपय हकीकतोंका संक्षिप्त वर्णन करनेका है। मनुष्यगतिमेंसे ही किसी भी जीवका मुक्तिगमन होता होनेसे इस मनुष्यगति वर्णन प्रसंगके साथ ही साथ सिद्ध शिला और मुक्तात्मा विषयक हकीकत भी दसवें परिशिष्ट द्वारा कहेंगे। ___ अगरचे मनुष्यगति विषयक हकीकत जीवविचार, दंडक प्रकरणमें आ ही गई है और इस ग्रन्थका अध्ययन इन ग्रन्थोंके अध्ययनके बाद ही (प्रायः) होता होनेसे उस हकीकतको पुनः बतानेकी ज्यादा अगत्य नहीं है, लेकिन शायद कोई सीधे ही इस ग्रन्थके अध्ययन करनेवाले जैन-जेनेतर व्यक्तियोंके लिए उसका पुनरावलोकन करना समुचित मानकर संक्षिप्त जरूरी समालोचना कर लें। प्रथम तो चौदह राजलोक प्रमाण गिनी जाती विराट दुनियामें सबसे कम निवासक्षेत्र मनुष्योंका है / अर्थात् वे तिज़लोक पर रहे असंख्य द्वीप-समुद्रमेंसे सिर्फ अढाईद्वीप क्षेत्रमें ही रहे हैं, जिसके अंदर हम भी रहते हैं वह जंबूद्वीप, ( लवणसमुद्रके बादका) दूसरा धातकीखंड द्वीप और तत्पश्चात् ( कालोदधिसमुद्र के बाद आए पुष्करवरद्वीपका अर्ध भाग होनेसे ) अर्धपुष्करद्वीप- इस तरह अढाईद्वीप जितनी ही जगह मनुष्योंके रहनेके लिए हैं / जंबूद्वीप 1 लाख योजनका और तत्पश्चात् आए एक एक समुद्र-द्वीपद्विगुणद्विगुण प्रमाणवाले हैं। ___ इस अढाईद्वीपमें बसते मनुष्य दो प्रकारके हैं / 1. आर्य और 2. म्लेच्छ / आर्य कर्मभूमिमें उत्पन्न होते हैं तथा अनार्य अकर्मभूमि और अन्तर्वीपमें उत्पन्न होते हैं। कर्मभूमि-अर्थात् जहाँ कर्म कहलाते क्रिया-व्यापार वर्तित हों, असि, मसी, कृषि अर्थात् शस्त्र, विद्या, कला, शिल्प, कृषि आदिकी अनेक प्रवृत्तियाँ चलती हों, तथा ज्ञान और चारित्रकी जहाँ उपासनाएँ होती हों वे / ऐसी भूमियाँ कुल पंद्रह हैं / जिनमें पांच भरत क्षेत्रों, पांच ऐरवत क्षेत्रों और पांच महाविदेह क्षेत्रोंका समावेश है / जंबूद्वीपमें एक भरत, एक ऐरवत और एक ही महाविदेह है। जबकि धातकी खंड और अर्धपुष्कर, ये द्वीप तो वलयाकार होनेसे दोनों बाजू पर उन क्षेत्रोंका स्थान होनेसे, एक ही नामके दोनों बाजूके होकर दो दो क्षेत्र रहे हैं / / ___ अकर्मभूमि-किसे कहा जाए ? कर्मभूमिसे विपरीत अर्थात् जहाँ असि, मसी, कृषि आदि किसी भी प्रकारकी क्रिया या व्यापार सर्वथा नहीं है, साथ ही श्रुत और चारित्र धर्मकी भी प्राप्ति नहीं है और जहाँ आर्योंसे भिन्न अनार्यों-म्लेच्छोंका निवास होता है वह / इस भूमिमें उत्पन्न होनेवाले युगलिक ही होते हैं / अतः वे भोगभूमि अथवा युगलिक
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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