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________________ * चक्रवर्ती के चौदह रत्न और उसका वर्णन * * 85 . .6. काकिणीरत्न-यह रत्न पहाडों को भी छिद सके ऐसा चक्रीके कोशलक्ष्मीभंडार में उत्पन्न होता है / वह विषहर, अष्टजाति सुवर्णों का बना है, छः दिशाओं में छः तिलोंवाला अतः ही पासे की तरह समचतुष्कोणाकार, 12 हाशिया और 8 कर्णिकावाला, 8-7-6 इत्यादि अनियमित तोले के जितने सुवर्ण प्रमाण का सुनार की एरण (लोहे का औजार ) जैसा होता है। चक्री दिग्विजय करने जाए तब उत्तर भरतमें जाने आनेमें बीच में आये वैताढ्य पर्वत की गुफाओंमें सूर्य-चन्द्र के प्रकाश के प्रवेशहीन, घोर अंधकारमय गुफा के मार्ग को सदाकाल प्रकाशमय करने महा-गुफाओं की पूर्व-पश्चिम दोनों बाजूकी दीवारों पर वृत्त अथवा गोमूत्राकार में इस काकिणी रत्न की अनीसे 49 मंडलों का आलेखन करने में इस रत्न का उपयोग होता है / इस रत्नसे आलिखित ( उत्कीर्ण ) मंडल दिव्य प्रभावसे प्रकाशित होनेके कारण चक्रवर्ती के अस्तित्व पर्यन्त अवस्थित प्रकाश देनेवाले बनते हैं जिससे लोगोंका गमनागमन का मार्ग सुखरूप बनता है / साथ ही स्कन्धावार-छावनी में रहने के कारण, उसके हस्त स्पर्श से 12 योजन तक प्रकाश देकर रात्रि को भी दिवस बना देता है / तदुपरांत सब बटरवरों [ मापने के घाट ] के ऊपर का आलेख काकिणीसे किया जाता है, तब. ही वह प्रमाणभूत गिना जाता है। 7. मणिरत्न-यह भी कोशागाररूप लक्ष्मी भंडार में उत्पन्न होनेवाला, निरुपम कान्तियुक्त, विश्व में अद्भुत, वैडूर्य मणि के प्रकार में सर्वोत्तम, सर्वप्रिय, मध्य में वृत्त और उन्नत छः कोनोंवाला, दूर तक प्रकाश देनेवाला शोभित होता है। इसका उपयोग जब सैन्य रक्षण के लिए चर्मरत्न और छत्ररत्न का संपुट बनाना हो तब संपुट में उद्योत करने के लिए छत्ररत्न के तुम्ब के साथ बांधा जाता है / अथवा तमिस्रागुफामें प्रवेश करते समय हस्ति पर बैठा चक्री, हस्ती के दक्षिण कुम्भस्थल में देवदुर्लभ ऐसे मणिरत्न को रखकर प्रकाश को 12 योजन तक फैलाता, अपने आगे और दोनों बाजू की तीनों दिशाओंको प्रकाशित करता हुआ गुफा लांघ सकता है और उत्तर भरत की विजय यात्रा में सफलता पाता है / ... साथ ही वह रत्न मस्तक पर तथा हाथ में बांधा हो तो, सर्वोपद्रव हर कर, सुख-संपत्ति देनेवाला, सुरासुर-मनुष्य तिर्यंचादिक के, सर्व शत्रओंके उपद्रवोंको हरनेवाला है / मस्तकादि अंग पर बांधकर संग्राम में प्रवेश करनेवाला पुरुष, शत्रु के शस्त्रसे .... 393. तीन दिशाओं में इसलिए कि पीछे आते सैन्य के लिए तो मंडल प्रकाश सहाय है।'
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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