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________________ * चक्रवर्ती के चौदह रत्न और उसका वर्णन * प्रबंध करवाकर रवाना करते हैं / फिर नगर की अठारह आलमको खबर देकर, नगरशुद्धि कराके धूमधाम से प्रजा सहित नृपति पुप्प-चंदन, सुगंधी द्रव्योंकी विपुल सामग्रीपूर्वक शालामें जाकर चक्ररत्न की यथार्थ विनयपूर्वक पूजादिक विधिर्या करते हैं / फिर चक्ररत्नकी महिमा फैलाने अष्टाह्निकादि महा महोत्सव करके, प्रजाको दान देकर, ऋणमुक्त करके आनंदानंद बरताते हैं / देवाधिष्ठित ये रत्न, छः खंडोंको जीतनेको जाते चक्रीको प्रथमसे ही स्वयं मार्गदर्शक और विजेता के रूप में चक्रीके आगे आगे चलते हैं और चक्री उनके पीछे चलता है और जब चले तब प्रमाणांगुल एक योजन चलकर खड़ा रहता है / 2. छत्ररत्न-यह भी आयुधशाला में ही उत्पन्न होता है / यह रत्न छातेकी तरह गोलआकारका, मस्तक पर धारण करने योग्य अति मनोहर होता हैं अतः शरद ऋतु के पूर्णचन्द्र जैसा मनोहर, चित्र-विचित्र और ऊपर 99 हजार [ छातेमें होते हैं इस तरह ] सुवर्ण की सलाइयोंसे अंदर के भाग में देखने पर पंजराकार जैसा शोभता, अन्तभाग में चारों तरफ मोती-मणिरत्न की मालाओंसे मंडित और छत्र के बाहर के ऊपरितन भाग में-चोटी पर अर्जुन सुवर्ण के शरच्चन्द्र जैसा स्वच्छ और उज्ज्वल शिखरवाला होता है। देवाधिष्ठित यह रत्न वामप्रमाण होने पर भी चक्री के हस्तप्रभाव मात्र से ही [चर्मरत्न को ढंकने के लिए साधिक बारह योजन विस्तीर्ण बनकर मेघादिक के उपद्रव से रक्षण करने को समर्थ होता है / जिस तरह भरतचक्री छः खंडोंको जीतने को जाते वक्त उत्तर भरतार्ध में युद्ध करते म्लेच्छ लोगों के आराधित मेघकुमार देवने चक्री सैन्य को कष्ट देने के लिए जब सात दिन तक वृष्टि की तब चक्री ने छत्र और चर्मरत्न को अद्भुत * संपुट बनाकर समग्र सैन्य का रक्षण किया था / यह रत्न वृष्टि-ताप-पवन-शीतादि दोषोंको हरनेवाला, शीतकाल में गरमी और उष्णकाल में शीतलता देनेवाला और पृथ्वीकायमय होता है / 3. दंडरत्न-आयुधशाला में उत्पन्न होनेवाला यह रत्न, चक्री के कंधे पर रहता है / चक्री का आदेश होने पर मार्ग में आती अनेक ऊँची-नीची विषन भूमि आदि सर्व को दूर करके समतल-सरल मार्ग कर देनेवाला, शत्र के उपद्रवां को हरनेवाला, इच्छित मनोरथों का पूरक, दिव्य और अप्रतिहत होता है / और जरूरत पड़ने पर यत्न . 391. तीर्थंकर के जन्मकी खुशहालीमें, उनके पिता जिस प्रकार करते हैं उस तरह /
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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