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________________ * सातों नारकों में लेश्या का विभाग . गाथार्थ-विशेषार्थ अनुसार। विशेषार्थ-लेश्या किसे कहते हैं ? उसका विशेष स्वरूप अगर कि बहुत गहन है, तथापि किंचित् स्वरूप देवद्वार में दिया है अतः यहाँ अधिक लिखना मुलतवी रखा है। पहले दो नरक में एक कापोतलेश्या होती है परन्तु पहले में जितनी मलिन रूपमें होती है, उससे भी अधिक मलिन दूसरी शर्करप्रभा के जीवों में वर्तित होती है, तीसरी वालुकाप्रभा में कापोत और नील ये दो लेश्याएँ होती हैं। [ इनमें जिनका साधिक तीन पत्योपमका आयुष्य है उन्हें कापोत और उससे अधिकवालोंको नील होती है ] चौथी पंकप्रभा पृथ्वी में एक नीललेश्या ही होती है, पांचवीं धमप्रभा में नील और कृष्ण ये दो लेश्याएँ होती हैं। [ परन्तु उस नरक में जिन का साधिक दस पल्योपम का आयुष्य हो उन्हें नील और उनसे अधिकायुषी जीवों के कृष्ण लेश्या होती है। और अन्तिम तमः और तमस्तमःप्रभा इन दोनों नरकों में एक कृष्णलेश्या ही होती है। परन्तु पाँचवें से छठे की कृष्णलेश्या अति मलिन और उससे भी सातवें में तो केवल तीव्रतर संक्लिष्ट-मलिन होती है। [256 ] अवतरण-देव, नारकों के द्रव्यलेश्या का अवस्थितपन फिर भी भावलेश्या का जो बदलपन होता है वह इस गाथा द्वारा ग्रन्थकार महर्षि बताते हैं : सुरनारयाण ताओ, दव्वलेसा अवडिआ भणिया। . भावपरावत्तीए, पुण एसिं हंति छल्लेसा // 257 // - गाथार्थ—सुर और नारकों की द्रव्यलेश्या अवस्थित कही है, साथ ही भावना परावर्तनपने से उनके छः लेश्याएँ कही हैं। [ 257 ] ' विशेषार्थ—पूर्वगाथा में प्रथम दो नारकी में कापोतलेश्या, तीसरी में कापोत तथा नीललेश्या इस तरह यावत् सातवी नारकी में केवल कृष्णलेश्या बताई हैं / देवों के वर्णन प्रसंग में भी ‘भवणवणपढमचउले सजोइसकप्पदुगे तेऊ ' इत्यादि गाथा से अमुक देवों के अमुक लेश्याएँ होती हैं ऐसा कहा है। देव और नारकों के कही लेश्याएँ अवस्थित हैं, अर्थात् जिन देवों के तथा जिन नारक जीवोंके जो जो लेश्याएँ कही हैं, वे लेश्याएँ अपने उपपात-जन्म से आयुष्य समाप्ति यर्यंत (तथा दो अन्तर्मुहूर्त अधिक) तक रहनेवाली होती हैं। उन लेश्याओं में मनुष्य तथा तिर्यंचों की लेश्या की तरह परावर्तन नहीं होता। शंका-जब देवों के तथा. नारकजीवों के ऊपर बताये अनुसार अवस्थित लेश्याएँ होती हैं तो फिर सातवीं नारकी में भी सम्यक्त्व की प्राप्ति कही है वह किस तरह
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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