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________________ *58 . . श्री बृहत्संग्रहणीरत्न-हिन्दी भाषांतर * महापरिग्रही-विपुल धन-कंचन-स्त्रियाँ आदि महान परिग्रह के रखनेवाले / इन में मम्मण सेठ, वासुदेव, वसुदेवादि मंडलिक राजा, सुंभम, ब्रह्मदत्त चक्रवर्त्यादिक समझ लेना / तीवक्रोधी-तीव्र- महान क्रोध के करनेवाले बात बात में लडनेवाले दुर्वासा. जैसे अत्यंत क्रोधी पुरुष तथा व्याघ्र सर्वादिक पशु / निःशील-किसी भी प्रकार के व्रत-नियम रहित, चारित्रहीन तथा शील चारित्रब्रह्मचर्यादिक से रहित अर्थात् परस्त्री लंपटादि हों, अनेक परनारियों के पवित्र शील को लूटनेवाले हों / वेश्या जैसी स्त्रियों का तथा उनके यहाँ गमन करनेवाले पुरुष आदि प्रमुखों का इस में समावेश हो सके / पापरुची-पाप की ही रुचिवाला हो, पुण्य के कार्यों में जिसे प्रेम ही न होता हो, पुण्य कार्य को देखकर जो जलता हो, जिसे धर्म के कार्य देखने या सुनने भी पसंद न हों, जहाँ तहाँ पाप के ही कार्य करने में मशगूल हों ऐसे निठल्ले बहुत से लोग होते हैं, इस में उदाहरण देने की जरुरत नहीं है, असंख्य लोग देखने को मिलते हैं। रौद्रपरिणामी–रौद्र अर्थात् महा भयंकर परिणामी / अंतर में हिंसानुबंधी आदि रौद्रध्यान चलता ही हो / इन में छिपकली-बिल्ली-तंदुलीय मत्स्यादिक प्राणी तथा मनुष्य, जिन की सारा दिन अशुभ विचारधाराएँ ही चलती हों, अनेकों का अहित ही करते हों, घोर प्राणीवध तथा मांसाहारादिक करनेवाले हों ऐसों को गिने जा सकते हैं / ऐसे जीव अशुभ परिणति के योग से अतिक्रूर-दुर्ध्यान में प्रविष्ट' होकर, नरकायुष्य को बांधते हैं और नरक में उत्पन्न होते हैं / दुःखी दुःखी होकर कष्ट में मरते हैं / अहोनिश दुःख में डूबे नारकों को ( अमुक काल छोडकर ) नरक में निमिषमात्र भी सुख का समय नहीं है / दुःख के परंपरा की श्रेणी सतत चालू ही होती है / तो फिर सुख कब होता है ! 1 उववाएण व सायं, नेरइयो 2 देवकम्मुणा वावि 3 अज्झवसाण मिमित्तं अहवा 4 कम्माणुभावेणं // 1 // मात्र कदाचित् नीचे वताए जन्मकाल आदि प्रसंग में कुछ सुख होता है लेकिन वह स्वरुप मात्र और स्वल्पकाल टिकनेवाला होता है। 376 सुभूम चक्रवर्ती परिग्रहकी प्रमाणातीत आसक्ति से छः खंड के ऊपरांत सातवाँ खंड साधने का प्रयत्न करने पर मरकर सातवें नरक में उत्पन्न हुआ है, जो कथानक प्रसिद्ध है।
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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