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________________ अवसर्पिणी कालका वर्णन गाथा 5-6 [45 प्रमाणका है। इस आरेके प्रारंभमें मनुष्यकी ऊँचाई उत्कृष्ट सात हाथकी है और उत्कृष्ट आयुष्य बहुलतासे 130 ७२वर्षका होता है। चौथे आरेके अन्तमें उत्पन्न हुए श्री महावीरपरमात्मा चौथे आरेके तीन वर्ष और साढे आठ महीने शेष रहे तब 72 वर्षका आयुष्य भोगकर सिद्धिपद प्राप्त किया। तदनंतर उनकी तीसरी पाटपर श्रीजंबूस्वामिजी हुए। उनके सिद्धिगमनके बाद इस पंचमकालमें मनःपर्यवज्ञान, केवलज्ञान, ७३मोक्षगमन इत्यादि 10 वस्तुओंका विच्छेद हुआ। अर्थात् तद्भव मोक्षगामीत्वका अभाव हुआ, यह विच्छेद भरत, ऐश्वत क्षेत्राश्रयी जानना। परंतु महाविदेहक्षेत्र जहाँ कि हमेशा चतुर्थ आरेके प्रारंभके भाव वर्तमान हैं, 72. इस पंचम आरेमें विशेषकर पाश्चात्य देशोंमें क्वचित् 200 वर्ष तकके आयुष्य भी जाहिर हुए सुने हैं / इसलिए भड़कनेकी कुछ भी जरूरत नहीं; क्योंकि उक्त 130 वर्षका वचन है यह प्रायः समझना, अतः वैसे मनुष्य अल्प हों और कदाचित् किसी जीव विशेषने पूर्वभवमें तथाप्रकारका उत्तमोत्तम जीवदया-रक्षादिका कार्य तन्मयरूपसे किया हो तो अधिक आयुष्य भी संभबित हो सकता है। जिसके लिए योगशास्त्रमें कहा है कि___“ दीर्घमायुः परं रूपमारोग्यं श्लाघनीयता / अहिंसायाः फलं सर्व किमन्यत्कामदैव सा // " साथ ही हम यदि श्रीवीरनिर्वाणसे पांचवीं शताब्दीके इतिहासकी ओर दृष्टिपात करेंगे तो जाननेको मिलेगा * कि जब इंद्र महाराज, पंचमीकी संवत्सरी चतुर्थीको करनेवाले श्रीमान् कालिकाचार्य महाराजकी परीक्षाके निमित्त मनुष्यलोकमें वृद्ध ब्राह्मणका रूप धारण करके आचार्य भगवंतके पास उपस्थित हुए थे, तब उनके ज्ञानकी परीक्षाके लिए अपना हस्त (हाथ) दिखाकर ' हे गुरुदेव !' मेरा आयुष्य कितना वर्तमान है यह मेरी रेखा देखकर कहिए ऐसा जब कहा तब विज्ञप्तिसे कलिकाचार्य महाराज आयुष्य रेखा देखते देखते 300 वर्षे तक पहुंचे, तबतक उन्होंने शंका भी नहीं की, कि यह मनुष्य है कि अन्य कोई ? लेकिन रेखामें जब ज्ञानदृष्टि से 300 से आगेका आयुष्य देखा तब उन्होंने श्रुतके उपयोगसे कहा कि, 'हे आत्मन् ! तू मनुष्य नहीं, परन्तु सौधर्मदेवलोक का स्वयं इन्द्र है।' - इससे हमें तो यह सार लेना है कि 300 वर्षका आयुष्य इस कालमें सुना जाए तब तक कुछ भी आश्चर्य करने जैसा नहीं है / वर्तमानमें विदेशमें एक मनुष्य 250 वर्ष जीवित रहा, ऐसा समाचार अखबार में प्रसिद्ध हुआ था, साथ ही गुजरात-काठियावाड (सौराष्ट्र )में 150 वर्षकी आयुके मनुष्य वर्तमानमें भी, जीवित हैं ऐसा सुना है / दीर्घ आयुष्यवाले मनुष्योंके उल्लेख अनेक बार सुननेको मिलते हैं, परन्तु 300 वर्षसे उपरकी आयुवाले मनुष्यकी बात अभी जाननेमें नहीं आई है। वे क्या क्या ? तो * 73. " मणपरमाहि पुलाए, परिहारविसुद्धी उक्समे कप्पे / ___संजम-तिग-केवल–सिज्झाणा य जंबुम्मिच्छिन्ना // " 234
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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