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________________ * 34 * * श्री बृहत्संग्रहणीरत्न-हिन्दी भाषांतर * निकालना हो तो प्रत्येक नरकों के आदिम प्रतर की कुल संख्या को मुख संज्ञक और अंतिम प्रतरवर्ती संख्या को भूमि संज्ञक मान लेना, बाद में उपर्युक्त मतानुसार सर्व / गिनती करने से इष्ट नरक में आवाससंख्या प्राप्त होती है / ___उदाहरण—जिस प्रकार रत्नप्रभा में प्रथम प्रतर पर 389 यह मुख संख्या और. रत्नप्रभा के अंतिम तेरहवें प्रतर की 293 की संख्या यह भूमि है, इन दोनों का समास करने से अथवा मिलाने से 682 की संख्या मिलती है उसका आधा 341, इसे उन्हीं तेरह प्रतरों से गुनने से 4433 की संख्या आती है / इतनी आवलिकागत संख्या प्रथम नरक में समझ लें / इस संख्या को प्रथम नारकी की गाथा 217 में बताई गई 30 लाख नरकावासों की संख्या में से कम करने के बाद जो 29,95,567 की संख्या शेष रहती है इसे पुष्पावकीर्णों की समझें / [दोनों को पुनः मिलाने पर 30 लाख की संख्या मिल जायेगी। इस प्रकार सभी नरक पर दोनों प्रकार की आवाससंख्या सोच लेना / इति प्रतिनरकाश्रयी उदाहरणम् / . // प्रत्येक नरकाश्रयी तथा एकत्र आवलिका प्रविष्ट-पुष्पावकीण आवास संख्याका यंत्र।। नाम प्रतर पंक्तिबद्ध पुष्पावकीर्ण कुलसंख्या सातों नरकाश्रयी / 49 9653/8390347 84 लाख 1 रत्नप्रभा में 13, 4433/ 2995567 30 लाख 2 शर्कराप्रभा में 11 2695/ 2497305 25 लाख 3 वालुकाप्रभा में 1485/ 1498515/ 15 लाख 4 पंकप्रभा में 707 999293 10 लाख 5 धूमप्रभा में ___5 265 299735, 3 लाख 6 तम प्रभा में 42 21, 3 63 99932 99995 7 तमस्तमःप्रभा में सातों नरकाश्रयी मुख भूमि संख्याकरण [वैमानिकवत् | यहाँ पर नहीं दिया गया है लेकिन ग्रन्थ में देख सकते हैं। [दूसरी रीति से भी इसे अगर लाना हो तो प्रत्येक नरक की यथायोग्य प्रतर संख्या को तथा सर्व प्रतर की एक ही ओर (बाजू ) की आवास संख्या को एकत्रित
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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