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________________ * 16 * * श्री बृहत्संग्रहणीरत्न-हिन्दी भाषांतर * लिए चारों ओर देखते रहते हैं तब न तो कोई इनकी मदद करता है और न तो कोई उनका रक्षण करता है / धारदार तलवारें, भाले (बरछे) कुल्हाडियाँ चक्र, परशु, त्रिशल, मुद्दगर बाण, वांसले और हथौडे आदि से उनके तालु- मस्तिष्कको फोड डालते हैं हाथ, कान, नाक, होंठ आदि को छेदते हैं और हृदय, पेट, आँखें तथा अंतडियाँ : (अंत्र) भेद डालते हैं। ऐसे ऐसे दुःखोंको भुगतने वाले ये कर्मपटलांध, दीन नारक पृथ्वी पर गिरते-उठते हमेशा लौटते ही रहते हैं ! हा ! हा ! सत्य ही वहां उनका कोई भी रखवाला नहीं होता !!! . इससे भी अधिक कर देव उन सबको कुंभी में पकाते हैं तथा उन्हें 500 योजन तक ऊँचे उछाल-फेंकते हैं अथवा अति वेदना के कारण स्वयं भी उछल पडते हैं। कभी कभी ऊपरसे नीचे पृथ्वी पर गिरते समय उनके बदन में भाले . पिरो देते हैं- अगर वन समान भयंकर चोंचवाले वैक्रिय पखी उन्हें पकडकर चिर-फाड डालते हैं और शेष जो बचते भी हैं, उनका वैक्रिय शरीररूप व्याघ्रादि हिंसक जानवरों द्वारा सर्वनाश करवाते हैं"। ____ इस प्रकार नरकगतिके महान दुःखों को प्राप्त करना यदि आप नहीं : चाहते हों तो प्रत्येक जीव को अपना जीवन सुधारकर पापाचरणों को दूर करके प्रथम से ही सचेत होकर वीतरागकथित शुद्धमुक्तिदायक मार्गका पालन अवश्य करना चाहिए ! शंका--ये परमाधामी देव नारकोंको दुःख देते हैं इसका कारण क्या है और दुःख देने से उनको नया कर्मबंधन लगता है या नहीं ? इस सन्तापदायक स्थान से 31 योजन दूर समुद्रमध्य में अनेक मनुष्यों की आबादीवाला रत्नद्वीप नाम का एक द्वीप (जहाँ वर्तमानकाल में हम जा नहीं सकते) हैं / वहाँ के लोगों के पास वज्र (कठिन पत्थरों) से बनी हुई बडी-बडी चक्कियाँ होती हैं। वे लोग उन चक्कियों को मांस-मदिग से पोतते हैं और उनके मध्य में बहुत मद्य-मांस भरते हैं। इसके बाद वे सभी मद्य-मांस से भरे हुए लॅबडों से जहाज भरकर समुद्र में जाते हैं और उन्हीं (बडों (तूबों) को समुद्र में डालकर जलचर मनुष्यों को बहुत लुभाते हैं / लुब्ध ऐसे जलमनुष्य उन्हीं तूबों को खाते-खाते क्रमशः चक्की के पास आकर लुब्ध होकर उसमें गिरते हैं और अग्नि द्वारा पकाये गये मांस तथा मदिरा को दो-तीन दिन तक बडे सुख-चैन से खाते-पीते रहते है, इतने में मौका देखकर रत्नद्वीपवासी शस्त्रसन्न सुभट यंत्र से चक्की के ऊपरि पड (चक्कर) को संपूट करके उसी चक्की को युक्ति से चलाना शुरु करके उन्हें चारों ओर से घेर लेते हैं (क्योंकि ये जलमनुष्य बहुत शक्तिशाली होने से खूब सावधानी रखनी पडती है) ये बडी-बडी चक्कियों को बडी
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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