SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 401
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ * नरकगतिप्रसंग में प्रथम स्थितिद्वार . . 5 . नहीं हैं। हरेक आत्माओं को वैसी दुर्गति में न जाना पड़े इसलिए पाप की प्रवृत्तियाँ बंद करके सदाचारी-संयमी और पवित्र जीवन जीने के लिए प्रतिपल जागृत रहना चाहिए / [205] // रत्नप्रभा के प्रति प्रतरपर जघन्योत्कृष्ट // शर्कराप्रभा के प्रतिप्रतर की आयुष्यस्थिति का यंत्र // आयुष्यस्थिति का यन्त्र / / प्रतर जघन्य स्थिति | उत्कृष्ट स्थिति प्रतर| जघन्य स्थिति | उत्कृष्ट स्थिति 1 | दस हजार वर्ष | नब्बे हजार वर्ष 1 | 1 सागरीपम | 1 सा० भाग 2 दस लाख वर्ष | नब्बे लाख वर्ष 2 | 1 सा. भाग | 1 ., के " नब्बे लाख वर्ष पूर्व को कोटि वर्ष म | 10 एक सा.
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy