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________________ 384 ] बृहत्संग्रहणीरत्न हिन्दी [गाथा 199-200 वाद्य है। इसका एक ओरका मुख गोलाकार विस्तीर्ण और दूसरी ओरका संकीर्ण लेकिन गोलाकार चमड़ेसे सुशोभित मुखवाला होता है, जिसकी पीठ बीचसे ऊँची होती है। . नौ-अवेयकका आकार 'पुष्पचंगेरी' जैसा अर्थात् गुंफित पुष्पोंसे शिखापर्यंत भरी हुई चंगेरी (परिधिसह छाब) होती है वैसा / ___ अनुत्तरदेवोंका अवधिक्षेत्र यवनालक अपरनाम कन्याचोलकका (प्राचीन कालमें पैरकी घुटी तककी बनावटका फ्रोक जैसा) आकारका है। अर्थात् कोई कन्या कंचुकी सहित अधोवस्त्र जिस प्रकारसे पहनी हुी होती है वैसा आकार उनके अवधिक्षेत्रका दिखायी पड़ता है। इससे यह साबित होता है कि इसमें स्त्रीके सिरका भाग छूट जाता है और गलेसे लेकर पैर तकका वस्त्र इसमें आ जाता है और यह उपमा भी जो दी गयी है वह यथार्थ है; क्योंकि अनुत्तरके देव पुरुषाकृति लोकके सिर-मस्तिष्कके स्थान पर हैं। वे देव वहाँसे लेकर अन्तिम सातवें नरकके तलवे तक देख सकते हैं / अब शेष रहा इसके ऊपरका एक मात्र सिद्धक्षेत्र स्थान (जिस प्रकार यहाँ मस्तिष्क शेष रहा है उसी प्रकार ) और जब इस समग्र क्षेत्रको चौदह राजलोकके चित्रमें देखेंगे तो ऊपर जो दृष्टांत कहा-बताया गया है वह आपको यथार्थ लगेगा। इस प्रकार जो आकार बताए गए हैं उन्हें चौदह राजलोकका चित्र अपने सम्मुख रखकर घटानेसे ठीक तरहसे समझ सकेंगे; क्योंकि क्षेत्राकार देखकर ही उपमाएँ दी हैं / यद्यपि ये सभी उपमाएँ सम्पूर्ण रीतिसे योग्य (यथार्थ ) न भी लगे ऐसा सम्भवित हो सकता है, लेकिन फिर भी करीबन मिलती आती है जरूर / इस प्रकार देवोंके अवधिक्षेत्रोंके आकार बताये हैं। शेष तिर्यंच तथा मनुष्यके अवधिज्ञानके क्षेत्राकार भी अनेक प्रकारी अनियत एवं भिन्न-भिन्न यथायोग्य होते हैं अर्थात् कि गोलाकार या स्वयंभूरमण समुद्रमें जैसे बहुत-से मत्स्याकार होते हैं वैसे नानाविध आकारसंस्थानवाले होते हैं / [199] अवतरण-संस्थानादि कहनेके बाद अब कौन-सी दिशामें किस देवका अवधिक्षेत्र अधिक होता है ? इसे बताते हैं। उड्ढे भवणवणाणं, बहुगो वेमाणियाण हो ओही / नारय-जोइसतिरियं, नरतिरियाणं अणेगविहो / / 20 / / गाथार्थ-विशेषार्थवत् / // 20 // विशेषार्थ-भवनपति तथा व्यन्तर देवोंमें अवधिज्ञानक्षेत्र बहुत ऊँचा होता है / ( इसी
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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