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________________ चारों गतिके जीवोंका अवधिज्ञानका आकार ] गाथा 193-194 [ 379 यहाँ तो दूसरे अनेक सुखोंमें वे तल्लीन बनते जाते हैं / इस प्रकार वे ३४४देवांगनादिके प्रति अपूर्ण कर्तव्यवान् रहते हैं तथा मनुष्याधीन कुछ भी कार्य उन्हें करना पड़ता नहीं है, क्योंकि वे अनुपम सामर्थ्यवान् होनेसे स्वयमेव स्वकार्यके साधक हैं। इन्हीं सब कारणोंसे अशुभ गन्धयुक्त इस मनुष्यलोकमें देव आते नहीं हैं / [ 193] अशुभगन्धोपेतपन किस तरह होता है ? मनुष्यलोकके मनुष्य, तिर्यंचादिके मृत-क्लेवरोंमेंसे तथा मूत्र-पुरीषादिमेंसे उत्पन्न अशुभ गन्ध जब (श्री अजितनाथ भगवान आदिके समयमें मनुष्य जब अधिक होते हैं तब मृत कलेवरादिका प्रमाण (मात्रा) अधिक शक्तिशाली होता है तब गन्धका प्रमाण भी) अधिक बनती है ३४५तब पाँचसौ योजन तक अथवा तो चारसौ योजन तक ऊँची जाती है। तथा पृथ्वीकी चारों ओर दुर्गन्धयुक्त वातावरण हमेशा रहता होनेसे देव इसी मनुष्यलोकमें आनेका पसंद नहीं करते हैं। वे अपने स्वर्गीय सुखका आनन्द छोड़कर यहाँ आये भी क्यों ? सिर्फ उक्त गाथाओंमें बताए गए अनुसार कल्याणकादिके विशिष्ट प्रसंग पर सदा कालसे चले आते नियमानुसार परमात्माके पुण्यके प्राग्भारसे-प्रभावसे ही देव इस लोकमें आते हैं। [194] अवतरण-वैमानिक निकायकी समाप्ति करते देवोंमें भवप्रत्ययिक अवधिज्ञानका क्षेत्र किसमें कितना होता है ? इसे बताते हैं। तथा प्रसंगवश साथ-साथ ही नारकी, देव, मनुष्य और तिर्यचके अवधिज्ञानका संस्थान-आकार भी बताते हैं। . 344. वदाचित् वे देव अपने पूर्वजन्मके उपकारी कुटुम्ब-परिवार, गुरु आदिसे मिलने, अगर उन्हें अपनी सम्पत्ति भी बताना चाहे, परन्तु जन्मके बाद यहाँ तुरन्त आनेवाले देवोंको वे देवियाँ उपस्थित होकर उन्हें प्रेमयुक्त ताने मारकर (उपहास द्वारा ) लज्जित करके हावभावसे पुनः येन केन प्रकारेण अपनी ओर आकर्षित करती हैं, तदनन्तर देव वहाँ सुखमें लीन हो जाते हैं और यहाँ मनुष्यलोकमें आना भूल जाते हैं / 345. गन्धकी इन्द्रियों (घ्राणेन्द्रिय )के पुद्गल ऊँचे नौ योजन तक ही जाते हैं / परन्तु यहाँ जो पाँचसौ योजन प्रमाण बताया गया है तो उसके लिए इस तरह समझना है कि यहाँसे जो गन्धके मूल पुद्गल ऊपर गए हैं वे अपान्तरालसे ऊपर आये हुए अन्य पुद्गलोंको अपनी गन्धसे वासित करते हैं, तब वासित बने हुए ये नये पुद्गल और ऊपर जाकर अन्य पुद्गलोंको वासित करते हैं / इस प्रकार अन्यान्यवासित पुद्गलोंमें उतने योजन तक गन्ध जानेका सम्भव समझ लें / ... उपदेशमाला कर्गिका टीकामें तो 800 से 1000 योजन तक गन्ध जा सकती है ऐसा बताया है।
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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