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________________ 354 ] बृहत्संग्रहणीरत्न हिन्दी [ गाथा-१७६ कप्पतिय पम्हलेसा, लंताइसु सुक्कलेस हुँति सुरा / / 1763 / / गाथार्थ-कृष्ण, नील, कापोत, तेजो. पद्म और शुक्ल ये छः लेश्याएँ हैं। इनमें भवनपति तथा व्यन्तर देवताओंकी पहली चार लेश्याएँ होती हैं। तीसरे ज्योतिषी निकायमें और चौथे वैमानिक निकायके प्रारम्भिक दो कल्पोंमें एक तेजोलेश्या होती है। उसके बादके तीन कल्पोंमें पद्मलेश्या और लांतकादि ऊपरके सर्वकल्पोंके देव एक शुक्ल लेश्यावाले ही होते हैं। // 176-1763 / / विशेषार्थ लेश्या अर्थात् क्या? लिश्यते-श्लिष्यते जीवः कर्मणा सहाभिरिति लेश्याः। जिसके द्वारा जीव कर्मसे जुड़ जाता है उसे लेश्या कहते हैं। उसमें भी जिन कृष्णादि द्रव्योंके साहचर्यसे आत्मामें परिणाम उत्पन्न हो, उन द्रव्योंकों द्रव्यलेश्या कहा जाता है और इससे उत्पन्न होते परिणामको भावलेश्या कहा जाता है / कर्मके स्थितिबन्धमें जिस तरह कषाय मुख्य कारणरूप बनते हैं, उसी प्रकार कर्मके रसबन्धमें लेश्याएँ मुख्य कारणरूप हैं। गाथार्थमें भवनपति तथा व्यन्तर निकायमें चारों लेश्याएँ बतायी हैं, परन्तु उनमें बसते परमाधामी देव तो सिर्फ एक कृष्णलेश्यावाले ही होते हैं। ज्योतिषी देवोंमें जो तेजोलेश्या होती हैं, उससे अतिरिक्त सौधर्ममें आये हुए देव अधिक विशुद्ध होते हैं। इससे भी अधिक ईशानकी विशुद्धि समझे और इसके अलावा सनत्कुमार-माहेन्द्र-ब्रह्म कल्पके देव सिर्फ पद्म लेश्यावाले ( परन्तु उत्तरोत्तर विशुद्ध ) और उससे ऊपरि लांतकादि अवेयक तथा अनुत्तर आदि देव एक परमशुक्ल लेश्यावाले (उत्तरोत्तर विशुद्धिकी वृद्धिसे) जाने-समझे। इन्हीं कारणोंसे ही उन देवोंको अधिक निर्मल एवं उत्तम माने गये हैं। ___यह तो द्रव्यलेश्याकी अपेक्षासे-बहुलतासे सामान्य कथन है, अन्यथा हरेक निकायमें भावके परावर्तनको लेकर छः भावलेश्याएँ तो होती ही हैं। इन लेश्याके भाव 32 षट्पुरुषयुक्त जम्बूवृक्षके दृष्टांत ( मिसाल )से जानने योग्य 321. किसी एक समय कोई छः मनुष्य एक अरण्य ( वन )में जा पहुँचे / वहाँ वे क्षुधातुर हुए। इतनेमें सामने जामुनका एक पेड़ दिखायी पड़ा / उसे देखकर छःमेंसे एक कहने लगा कि इसी पूरे पेड़को मूल (जड़ )से ही काट दें तो सुखसे हम बिना परिश्रम उठाये जामुन खा सकते हैं / यह सुनकर दूसरेने कहा कि ऐसा नहीं, पेड़को काटनेके बजाय हमें जामुनसे काम है तो क्यों न हम उसकी बड़ी-बड़ी शाखाएँ (डालियाँ ) काटें ? तीसरा बोला, बड़ी-बड़ी शाखाएँ किस लिए ? छोटी-छोटी डालियोंसे हमारा - काम चल सकता है तो छोटी डालियाँ ही काटें / इसके प्रत्युत्तरमें चौथा पुरुष कहता है कि सभी शाखाओंका नाश
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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