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________________ अपरिग्रहीता देवियों के विमान और आयुष्य ] गाथा 172-176 [353 योग्य जानें / इस प्रकार समयादिककी वृद्धिसे यावत् (२०से लेकर ) तीस पल्योपम तककी आयुषी देवियाँ शुक्र देवोंके भोग्य जानें / इस प्रकार तीससे लेकर चालीस पल्योपमकी स्थितिवाली देवियाँ ( स्वस्थानमें रहकर ) आनत देवलोकके देवोंके भोग्य हैं। इस प्रकार (40 पल्योपमसे ) समयादिककी वृद्धिसे पचास पल्योपम तककी देवियाँ ( स्वस्थानमें रहकर ) आरण कल्पके देवोंके भोग्य जानें / इस प्रकार छः कल्पका सम्बन्ध बताया गया है। अब ईशान कल्पमें अपरिग्रहीता देवियोंके चार लाख विमान होते हैं। उन विमानों में जिन देवियोंकी किंचित् अधिक पल्योपमकी स्थिति है वह ईशान कल्पके देवोंका ही भोगरूप होती हैं। पूर्वोक्त क्रमपर समयादिककी वृद्धिसे यावत् पन्द्रह पल्योपमकी स्थिति तककी सर्व देवियाँ माहेन्द्र देवोंके भोग्य, समयादिककी वृद्धिसे दस-दस पल्योपमकी वृद्धि करते हुए अर्थात् पूर्वकी स्थितिमें दसकी वृद्धि करते हुए पच्चीस पल्योपमकी स्थितिवाली देवियाँ लांतक देव भोग्य, पैंतीस पल्योपम तककी देवियाँ सहस्रार देव भोग्य, पैंतालीस पल्योपम स्थिति तककी (स्वस्थानमें रहकर ) प्राणत देवोंके भोग्य, पचपन पल्योपम स्थिति तककी अच्युत देवोंके भोग्य जानें। ये देवियाँ गणिका समान होनेसे तथा वे अपनोंसे ऊपरि देवोंके भोगके लिए आती जाती होनेसे इन्हीं अपरिग्रहीता देवियोंकी वक्तव्यताका ही सम्भव होता है परन्तु परिग्रहीता ( कुलांगना)को होता नहीं है। [ 172-175 | . // देवी आयुष्यमानपर देवभोग्य यन्त्र // आयुष्यमानानुसार | यथायोग्यदेवभोग्य | आयुष्यमानानुसार | यथायोग्यभोग्यत्वं 1 पल्योपमायुषी सौधर्मदेवोंके भोग्य | साधिक पल्योपमायुषी | ईशानदेवोंके सेव्य 10 , सनत्कुमारदेवोंके भोग्य | 15 पल्योपमायुषी | माहेन्द्रदेवोंके सेव्य ब्रह्मकल्पदेवोंके भोग्य | 25 , लांतकदेवोंके सेव्य शुक्रदेवोंके भोग्य - 35 , सहस्रारदेवोंके सेव्य ,,, आनतदेवोंके भोग्य 45 , प्राणतदेवोंके सेव्य 50 ,, ,, आरणदेवोंके भोग्य | 55 , | अच्युतदेवोंके सेव्य // देवगतिके उपसंहारमें चतुनिकायाश्रयी प्रकीर्णक-अधिकार // अवतरण-अब षट्लेश्याके नाम बताकर चार देवलोकमेंसे कौनसे देवलोकमें कौन कौनसी लेश्या हों उन्हें यहाँ पर देढ़ गाथाओंमें बताते हैं। किण्हा-नीला-काऊ-तेउ-पम्हा य सुक्कलेसा य / भवणवण पढम चउले--स जोइस कप्पदुगे तेऊ / / 176 / / व. सं. 45
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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