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________________ सूत्र अर्थात् क्या ? कौन कौनसी रचना सूत्ररूपमें माना जायँ ? ] गाथा-१५६ [ 333 सकता है ? उसके लिए थोड़ा कुछ समझ लेते है। ___हरेक युगमें अपने-अपने कालमें तीर्थंकर होनेवाली 24 व्यक्तियाँ जन्म लेती हैं। हरेक तीर्थकरकी आत्मा परभवमेंसे मनुष्यलोकमें जब अवतार धारण करती हैं तब तीन ज्ञान सहित होती हैं / अर्थात् कि हमसे एक ज्ञान अधिक होता है। जन्मके बाद स्वयंसम्बुद्ध होनेसे यथायोग्य समय पर संसारका भोग कर्मका क्षय होते ही गृहस्थाश्रममें संयम-चारित्रपालन अशक्य होनेसे इस अवस्थाका त्याग करके, सर्व पापके त्यागरूप पंचमहाव्रतादिके नियमस्वरूप चारित्रका अंगीकार करते है। विश्वकल्याणके लिए ग्रहित चारित्रको उनकोटिकी अहिंसा-तप-संयमकी आराधनासे निर्मल बनाते जाते है। इस आराधनामें उपस्थित होते अनेक विघ्न और उपद्रवको वे समभावसे सहते हैं / अन्तर्मुख बनकर स्वभावरमणताके क्लिष्ट कर्मोंका क्षय करते हैं। परिणामस्वरूप वे सम्पूर्ण ज्ञानी और सम्पूर्ण चारित्रवान् बनते हैं। उस समय ही उनके प्रभावसे देवलोकमें देवविरचित समवसरण (प्रवचन योग्य सभास्थान ) गृहमें बिराजमान होकर देव, मनुष्य तथा पशुपक्षियोंके समक्ष अपना प्रथम प्रवचन देते हैं। यह प्रथम प्रवचन पूर्ण होते ही भगवन्तका. प्रधान नवदीक्षित शिष्यगण जो समर्थ बुद्धिनिधान होता है, उसको गणधरनामकर्मका उदय होते ही गणधर पद स्थापनेका समय आते गणधर बननेवाली व्यक्ति प्रथम गुरुस्थानीय तीर्थंकर परमात्माकी विनयपूर्वक प्रदक्षिणा करके, प्रभुके सामने हाथ जोडकर खड़ी रहती है। इन्द्र महाराज सुगन्धी वासचूर्णका थाल लेकर खड़े रहते है। भगवन्त खड़े होकर गणधर भगवन्तों पर वासक्षेप डालकर उनको गणधरपद पर स्थापित करते हैं। यह पद प्राप्त होते ही उनमें अपूर्व शक्तियोंका प्रवाह बहने लगता है। विश्वकल्याणके लिए शास्त्रकी रचना जरूरी होनेसे गणधर शास्र रचनाकी तैयारियाँ करते हैं और उसी समय पर ही भगवन्तसे सविनय प्रदक्षिणा करके प्रश्न करते हैं कि-करुणावत्सल भगवन् ! आप सम्पूर्ण ज्ञानी बने हैं। अखिल (समग्र) विश्वके सम्पूर्ण चराचर भावोंको हस्तामलकवत् देख रहे हैं, विश्वके सम्पूर्ण पदार्थ और उनके भावोंको आप साक्षात् देख सके हैं तो भगवन्त मैं प्रश्न करता हूँ कि इस विश्वमें किं तत्त्वं? तब भगवन्त इसका प्रत्युत्तर देते, हैं कि ' उपन्नेइ वा' अर्थात् ‘पदार्थ उत्पन्न होते हैं। इतना ही बोलते हैं। फिरसे पूर्ववत् विधि करके सामने खड़े रहकर प्रश्न करते हैं कि-भगवन् किं तत्त्वं ? तब भगवंत उत्तर देते हैं कि विगमेह वा' अर्थात् ‘पदार्थ विलीन होते हैं। उसी प्रकार तीसरी बार प्रश्न करते हैं कि-भगवन् किं तत्त्वं ? इसका उत्तर मिलता है कि 'धुवेइ वा ' अर्थात् ‘पदार्थ ध्रौव्य एवं स्थिर हैं। बादमें भगवन्त यह त्रिपदी गणधरोंको अर्पण करते हैं। सब पदार्थके बीज रूप प्रत्युत्तर ज्ञानको पाकर गणधर उस पर गम्भीर और गहन चर्या (विचारणा) तुरन्त ही करते हैं और अगाध ज्ञानका प्रादुर्भाव (प्रगट होना) होते ही
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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