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________________ देवलोकमें किन गतियोंमेंसे मरे हुए जीव उत्पन्न होते है ?] गाथा-१४९ [ 321 // चारों गत्याश्रयी सामान्य-उत्कृष्ट च्यवनविरहकालका यंत्र // नाम ज. वि. उ. वि. गर्भज नर तिर्यचका 1 समय देवता, नारकीका.... संमूछिम मनुष्यका... 24 मुहूर्त विकलेन्द्रियका.... अंतर्मुहूर्त संमूछिमतियंचादिकका. उस प्रकारसे सामान्य च्यवन विरह // देवलोकमें जघन्योत्कृष्ट उपपात-च्यवन संख्या यन्त्र // नाम भवन. सहस्रार यावत् सह. से अनुत्तर यावत् | ज. उप. च्य. संख्या | उ. उप. च्य. संख्या / / एक, दो, तीन तक संख्य, असंख्य यावत् संख्याता उपजते-च्यवते acancercentarvancancernancer. 3 // देवोंका आठवाँ 'गति' द्वार // अवतरण-सातवाँ द्वार समाप्त करके अब देवलोकमें किन गतियोंमेंसे मरे हुए जीव उत्पन्न होते है ? वह 'गमं' पदवाला आठवाँ गतिद्वार कहते हैं / नरपंचिंदियतिरिया-णुप्पत्ती सुरभवे पज्जत्ताणं / अज्झवसायविसेसा, तेसिं गइतारतम्मं तु / / 149 // गाथार्थ पर्याप्ता पंचेन्द्रिय मनुष्य और तिर्यंचोंकी देवलोकमें अध्यवसायकी विशेषतासे उत्पत्ति होती है और पुनः अध्यवसायकी विशेषतासे उस निकायमें तारतम्य भी होता है / // 149 // विशेषार्थ-देवलोकमें कौन-कौनसे जीव उत्पन्न होते हैं ? किन-किन कारणोंसे होते हैं ? यह बात उपरोक्त गाथामें कही गयी है / और साथ साथ उस देवलोकमें भी स्थान, वैभव, आयुष्यादिककी न्यूनाधिकता भी अध्यवसायोंकी विचित्रताके ही आभारी है यह बात भी बता दी है। बृ. सं. 41
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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