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________________ 308 ] बृहत्संग्रहणीरत्न हिन्दी [गाथा-१३७ करके जो टगर-टगर खड़ा हो उस पुरुष जैसा है, अथवा लम्बे काल तक उर्ध्व दम लेनेसे, वृद्धावस्थाके कारण मानों बहुत ही थककर विश्रान्तिके लिए निःश्वास उतारकर सहसा शान्तिको इच्छता पुरुष जिस तरह कटि भागमें हाथ देकर, अपने पैरोंको चौड़ा रखकर खड़ा हो, ऐसी लोकाकृति है। तीसरे प्रकारसे २८८त्रिशराव संपुटाकार, चौथी रीतसे (दधि, दहीका ) मंथन करती उस युवान स्त्री जिस आकारकी दिखती हो उस . आकार सा दिखायी देता है। ___यह लोक किसीने बनाया नहीं है, ( यह ) स्वयंसिद्ध, निराधार और सदाशाश्वत है, इसलिए इतरदर्शनोंकी लोकोत्पादक, पालक और संहारककी जो प्ररूपणा है वह असत्य स्वरूप है। यह लोक पंचास्तिकाय अर्थात् धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, जिवास्तिकाय, और पुद्गलास्तिकायमय है और उस उस द्रव्य स्कंध-देश-प्रदेश-परमाणुसे क्रमशः व्याप्त है / वे सभी द्रव्य, द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव और गुण आदि भावोंसे युक्त है। . इस चौदह राजलोकमें सजीवोंके प्राधान्यवाली, चौदह राज प्रमाण (56 खंडुक) लम्बी, और एक राज प्रमाण चौड़ी सनाडी आयी है। जिनमें एकेन्द्रियसे लेकर . पंचेन्द्रिय तकके जीव तथा तीनों लोकसे समाविष्टयुक्त है / इसके बाहरके लोकक्षेत्रमें मात्र एकेन्द्रिय ही जीव है। समग्र चौदह राजलोक क्षेत्रका मध्य (केन्द्र, सेन्टर) धर्मापृथ्वीको लपेटकर आये हुए असंख्य योजन आकाश क्षेत्र पार करनेके बाद आता है / अधोभागका मध्य चौथे नारकके असंख्य योजन आकाश बीतानेसे प्राप्त होता है / तिर्यक् (मध्य) लोकका मध्य अष्टरुचकप्रदेश है / और उर्ध्वलोकका मध्य बह्मकल्पके तीसरे रिष्टप्रतर पर कहा हैं / उर्ध्वलोक सात रज्जुसे न्यून मृदंगाकारमें, तिर्यक् लोक 1800 यो० डमरुक आकारमें और अधोलोक सात रज्जुसे अधिक अधोमुखी कुम्भी आकारमें है। ___अधोलोकमें नारक, परमाधामी और भवनपति देव-देवियाँ इत्यादिके स्थान हैं। ति लोकमें व्यन्तर, मनुष्य असंख्य द्वीप-समुद्र और ज्योतिषीदेव आये हैं। इसी तिर्छालोकमें मुक्तिप्राप्तिके साधनका योग सुलभ कहा है / ऊर्ध्वलोकमें सदानन्दनिमग्न उत्तमकोटीके वैमानिक देव तथा उनके विमान आये हैं / और उनके बाद सिद्ध परमात्मासे युक्त सिद्धशिलागत सिद्ध परमात्मा आये हैं। 288. एक शराव ( तश्तरी, थाल ) उल्टा, उसके ऊपर एक सीधा और उसके ऊपर फिरसे एक उल्टा शराव रखनेसे सम्पूर्ण लोकका आकार हो सकता है।
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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