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________________ 296 ] बृहत्संग्रहणीरत्न हिन्दी [ गाथा-११७ गाथार्थ-विशेषार्थवत् / // 117 // विशेषार्थ-सौधर्म और ईशान देवलोकके विमान २८३श्याम, नीला, रक्त, पीत, श्वेत इन पंच वर्णके होते हैं / सनत्कुमार, माहेन्द्र, देवलोकके नील, रक्त, पीत, श्वेत इन चार वर्णवाले होते हैं / ब्रह्म और लांतकमें रक्त (लाल), पीत (पीला ), श्वेत (सफेद) वर्णके होते हैं, शुक्र और सहस्त्रारमें पीत और श्वेत दो ही वर्णवाले होते हैं। बादके आनतसे लेकर अनुत्तर तकके सर्व विमान केवल एक 'श्वेत' वर्णवाले ही होते हैं। इनमें भी आनतादिचतुष्कसे नवग्रैवेयक और अनुत्तरके विमान परम शुक्ल वर्णके हैं। // वैमानिक निकायमें विमान-पृथ्वीपिंड तथा ऊँचाई प्रमाणके साथ विमानाधार-वर्णादिक यन्त्र // | वि. पृथ्वी | वि. ऊँचाई की विचाई | कुल |विमानाधार विमान वर्ण कल्प नाम | पिंड | प्रमाण / ऊँचाई पदार्थ 1. सौधर्मकल्पमें 2700 यो० | 500 यो. | 3200 यो० घनोदधि श्याम-नीला, रक्त, 2. ईशानकल्पमें " " पीत, श्वेत 3. सनत्कुमारक० 2600 यो० 600 यो घनवात श्याम,रक्त,पीत,श्वेत 4. माहेन्द्रकल्पमें , . 5. ब्रह्मकल्पमें | 2500 यो औरघनवात रक्त, पीत, श्वेत 6. लांतककल्पमें | 7. महाशुक्रकल्पमें 2400 यो० . 800 यो. पीत, श्वेत 8. सहस्त्रारकल्पमें , 9. आनतकल्पमें 2300 यो आकांशाधार श्वेत 10. प्राणतकल्पमें , 11. आरणकल्पमें 2300 यो 12. अच्युतकल्पमें , | 9. अवेयकमें | 2200 यो 1000 यो० 5. पांच अनुत्तरमें 2100 यो० 1100 यो यहाँ उपलक्षणसे भवनपतिके भवन, व्यन्तरोंके नगर और ज्योतिषियोंके विमान 283. पढमेसु पंचवण्णा, एक्काहाणीउ जा सहस्सारो / दो दो कप्पा तुल्ला, तेण परं पोंडरीयाई / / [ दे० प्र-वृ० सं०]
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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