SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 28
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ * 28] [ गाथा 3-4 उपल्योपमके छह प्रकार हैं-१. उद्धारपल्योपम, 2. अद्धापल्योपम तथा 3. क्षेत्रपल्योपम और प्रत्येकके सूक्ष्म और बादर ऐसे दो भेद हैं ऐसे कुल छह भेद हुए / उसी प्रकारसे 3“सागरोपमके भी छह प्रकार समझें, जिन्हें आगे बतलाया गया है। समयसे लेकर पुद्गल-परावर्तनकी कालसंख्याका कोष्ठक निर्विभाज्य काले प्रमाण ... ... .. ... 1 समय 9 समयका .... ..... ... ... 1 जघन्य अंतर्मुहूर्त ४°चौथा जल्यु० असंख्याताकी संख्या प्रमाण समयोंकी . 1 आवलिका 256 आवलिकाका ... ... ... 1 क्षुल्लक भव. .. 2223 3334 आवलिकाका ... ... ... 1 उच्छ्वास अथवा निःश्वास 4446 3456 आवलिकाका अथवा साधिक 17 / 1 प्राण (श्वासोच्छ्वास) क्षुल्लक-भवन अथवा उच्छ्वास निःश्वास मिलकर 7 प्राणोंका 1 स्तोक 7 स्तोकसे ___... 1 लव 383 लवोंसे (24 मिनटकी जो घड़ी होती है वह) . . 1 घड़ी 5954190096998134307707974654942619777476572573457186816 ( कुल 70 अंक संख्या) और ऊपर 180 शून्य रखें, जिससे 250 अंक संख्या आती है इस तरह 'वलभी' (वलभीपुर नगरमें हुई ) वाचनामें कहा गया है / / इसके अतिरिक्त दूसरोंने भी दूसरी बहुतसी अलग-अलग रीतियाँ बताई है, इसके लिए 'श्री महावीराचार्यकृत-गणित० संग्रह' आदि देखनेका अनुरोध है / 38. पल्य–अर्थात् बाँसकी सलाइयोंसे बना प्याला अथवा पल्य अर्थात् कुआं, अथवा गड्ढा भी कहा जाय, उस उपमासे दिया जाता प्रमाण ‘पल्योपम-प्रमाण' कहा जाता है। 39. सागरोपम–अर्थात् सागर (समुद्र)का पार जिस तरह नहीं पाया जाता, उसी तरह इस प्रमाणका भी पार नहीं पा सकते, जिससे सागरकी उपमावाला ऐसा काल वह सागरोपम काल कहा जाए / 40. चौथे जघन्ययुक्त असंख्याताकी जो संख्या है वह संख्या-प्रमाण समयोंसे मिलकर 1 आवलिका होती है, 256 आवलिकाका 1 क्षुल्लक-भव होता है, 4456 3459 आवलिका-कालसे 1 स्तोक होता है, 7 स्तोकोसे 1 लव होता है, 77 लवोंसे एक मुहूर्त होता है / साथ ही एक मुहूर्तमें 65536 क्षुल्लक भव भी होते हैं / मुहूर्तके भेद बहुत होनेसे 3773 भव भी कम पड़ते हैं /
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy