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________________ विमानोंका आकार और क्रम] गाथा-९६ / 275 अवतरण-पहले प्रति प्रतर आवलिकागत विमान संख्या प्राप्त करनेका क्रम दिखाकर, अब वे विमान किस आकारमें, किस क्रममें रहे हैं आदि बताते हैं / इंदयवट्टा पंतीसु, तो कमसो तंस चउरंसा वट्टा / विविहा पुप्फवकिपणा, तयंतरे मुत्तु पुवदिसि / / 96 / / गाथार्थ-पंक्तियों में इन्द्रक विमान गोल हैं, पश्चात् पंक्तिमें प्रथम त्रिकोण, फिर चौकोन, और फिर गोल विमान ऐसा क्रम होता है। और पुष्पावकीर्ण विमान विविधाकास्वाले हैं और ये पुष्पावकीर्ण विमान पूर्वदिशाकी पंक्तिको वर्जित करके शेष तीनों पंक्तियोंके आंतरेमें समझना / / / 96 / / विशेषार्थ - प्रत्येक कल्पमें पंक्तियोंके मध्यभागमें रहे इन्द्रक विमान गोल होते हैं और उन विमानोंसे चारों बाजू-प्रत्येक दिशावर्ती चारों पंक्तियाँ शुरू होती हैं, उनमें प्रत्येक पंक्तिका पहला विमान तिकोनाकार-शृङ्गाटक ] सिंघाडेके आकारका होता है / पश्चात् चारों पंक्तियों में चौकोनाकारवाले विमान कसरत करनेके 'अखाडाकार के समान होते हैं क्योंकि अखाडेका संस्थान अक्षपाटक जैसे होनेसे वह समचतुष्कोण आकारमें होता है / ततः गोलाकारवाले 0 (चारों पंक्तियोंमें ) विमान होते हैं। पुनः चारों पंक्तियों में त्रिकोण विमान, फिर चौकोन और फिर गोल / पुनः त्रिकोणसे लेकर प्रस्तुत आकारक्रम ६२वें विमान तक ले जाना, जिससे चारों दिशावर्तीकी पंक्तियों में बासठवीं संख्याके विमान त्रिकोणाकारवाले ही रहें / इनके सिवाय पुष्पावकीर्ण विमान तो स्वस्तिक-नन्द्यावर्त, श्रीवत्स, खड्ग, कमल, चक्रादि विचित्र आकारवाले प्रत्येक प्रतरमें होते हैं। वे पुष्पावकीर्ण विमान चारों पंक्तियोंमें जो चार आंतरे उन चार आंतरों में से पूर्वदिशाके अन्तरको वर्जित करके शेष तीनों आंतरों में रहे होते हैं। मुख्य इन्द्रक विमानकी चारों दिशाओंमें जो बासठ बासठ (अथवा ऊपरके प्रतरोंमें न्यून न्यून) त्रिकोण, चौकोन और गोल इस तरह अनुक्रमसे जो पंक्तिगत विमान हैं और उन पंक्तिगत विमानोंका जो असंख्य असंख्य योजनका अन्तर है उसमें पुष्पावकीर्ण विमान होते हैं। साथ ही अवतंसक विमान भी इन्द्रकविमान और पंक्तिके प्रारम्भके बिचमें होते हैं, तो पूर्वदिशाके अन्तरको वर्जित करके शेष तीनों पंक्तिगत विमानोंके आंतरेमें पुष्पावकीर्ण विमान अवश्य होते हैं / / 96 ] ___अवतरण-पूर्व गाथामें जो कम कहा, वह क्रम हर एक प्रतरमें समान है या विपर्यासवाला है ? उसके समाधानरूप यह गाथा बताती है कि
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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