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________________ 264 ] बृहत्संग्रहणीरत्न हिन्दी [ गाथा 86-00 (पन्द्रहवाँ) जिस अवसर पर दोनों चन्द्र आमने सामने दिशावर्ती घूमते हो उस समय एक चन्द्रसे दूसरे चन्द्रका 100659 15 योजनका अन्तर प्रमाण होता है / शंका :- सूर्यमण्डल प्रसंग पर सर्वबाह्यमण्डलमें वर्तित सूर्योंकी परस्पर व्याघातिक अबाधा पूर्ण 100660 योजन होती है; और दोनोंका चारक्षेत्र समान है तो फिर 16 अंश जितना तफावत होनेका कारण क्या ? समाधान :-चन्द्रमण्डलका चारक्षेत्र 510 यो० 48 भाग है। इस क्षेत्रका प्रारम्भ सर्वाभ्यन्तरमण्डलकी शुरूआतसे होता है, इस तरह इस उक्त अबाधा प्रमाण प्राप्त करनेके लिए चन्द्रका 56 भाग विस्तारका प्रथम मण्डलक्षेत्र उस क्षेत्रमण्डलके आदि (जम्बूद्वीपकी तरफ) से लेकर (अर्थात् प्रथम मण्डल सहित ) अन्तिम सर्वबाह्यमण्डल 509 यो०.५३ भाग दूरवर्ती हो, जब सूर्यमण्डल पूर्ण 510 यो० दूरवर्ती हो-इन दोनोंके बिच कुल 16 अंश तफावत पड़ा उसका कारण यह है कि-सूर्यमण्डल इकसठवें 48 भाग विस्तारवाला होनेसे दोनों बाजूका 510 यो० 48 भाग जो चारक्षेत्र उसमेंसे ऊपरके अडतालीस-अडतालीस अंशका दोनों बाजूका अन्तिम मण्डलका विस्तार कम हो (क्योंकि मण्डलकी प्राथमिकहद लेनेकी है परन्तु अन्तिम मण्डलका समग्र विस्तार साथमें गिननेका नहीं है) ऐसा करनेसे दोनों बाजू पर 510 योजनका क्षेत्र रहता है, जब कि यहाँ चन्द्रमण्डल इकसठवें 56 भागका होनेसे दोनों बाजू पर सूर्यमण्डल विस्तारकी अपेक्षासे 255. यो० भा. प्रतिभाग 35-30-4 एक बाजूका अन्तर 2. अन्य रीतसे मण्डल अन्तर प्राप्ति-- यो० भा० प्र० भा. 35-30-4 ___ + 56 35-86-4 35-30-4 अन्तर प्र० जोड करनेसे 70-60-8 +912 दोनों बाजू पर चन्द्रमण्डल 70-172-8 [विस्तारके + 1 सात प्रः भागका 1 भाग 70-173-8 [जोडनेसे +2-122 +1-61 36-25-4 424242 72-50-8 ७२-५१-परस्पर अन्तरप्रमाण +1 72-51-1 जवाब आया यो० इकसठवें भाग-प्रतिभाग / 72- . 51- 1 जवाब /
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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