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________________ प्रतिमंडलमें मुहूत्ते गतिमान प्ररूपणा ] गाथा 86-90 [ 253 इस नियमके अनुसार सर्वाभ्यन्तर परिधिमें 18 योजनका क्षेपण करने पर (किंचिद्-न्यून ) 315107 योजनका परिधि द्वितीय मण्डलका आता है। तीसरे मण्डलमें भी उसी तरह 18 योजनका क्षेपण करनेसे कुछ न्यून 315125 योजन आते हैं / ___ इस तरह 18 योजनका क्षेपण करनेसे इच्छितमण्डलमें परिधिका विचार करते हुए, सर्वबाह्यमण्डलमें पहुँचना तब उस मण्डलमें 318385 योजन परिधि 18 योजनकी वृद्धिसे आया; वरना वास्तविक रूपमें तो 17 योजन 38 अंश बढानेके होते हैं और इस हिसाबसे यथार्थ परिधि 318314 योजन 38 अंश आते हैं तथापि सुगमताके लिए 318315 योजनकी विवक्षा गणितज्ञ विचारें / इति परिधिनामक पञ्चमद्वारप्ररूपणा // ६-प्रतिमण्डलमें मुहूर्त गतिमान प्ररूपणा एक सूर्य किसी भी एक मण्डलको दो अहोरात्र में समाप्त करता है (क्योंकि किसी भी स्थानमें केवल परिधिके बढ़नेसे एक अहोरात्रके 30 मुहूर्त सम्बन्धी मानमें विपर्यास नहीं होता परन्तु क्रमशः परिधिके बढ़नेसे 60 मुहूर्तमें मण्डलको पूर्ण करनेको सूर्यकी मुहूर्त गति पूर्व पूर्वसे विशेष वृद्धिवाली होती जाती है ) और दो अहोरात्रके मुहूर्त 60 हैं अतः उस उस मण्डलके परिधिप्रमाणको साठसे बटा करें (भाग दे) तब एक मुहूर्तकी गति स्वतः निकल आती है / इस नियमानुसार सर्वाभ्यन्तरमण्डलके 315089 योजनके परिधिको 60 मुहूर्तसे भागनेसे (बटा करनेसे ) 5251 34 योजनकी गति प्राप्त होती है / दूसरे मण्डलके 315107 योजन परिधिको 60 मुहूर्तसे भागनेसे (बटा करनेसे ) 5251 44 आते हैं, इस तरह प्रतिमण्डलमें वृद्धिंगत होते परिधिके साथ 60 से बटा करके, मुहूर्त गतिमान प्राप्त करते हुए सर्वबाह्यमण्डलमें जाने पर उस सर्वबाह्यमण्डलके (वास्तविक 318314 योजन, 38 अंश किन्तु व्यवहारसे) 318315 योजनके परिधिप्रमाणको 60 से बटा करनेसे (भागनेसे ) 5305 37 योजनकी मुहूर्त गति आती है और उस समय दक्षिणायनकी समाप्ति होती है। - तत्पश्चात् सर्वबाह्यमण्डलसे लौटते परिधिकी हानि होती होनेसे और इसीलिए मुहूर्त गतिकी भी न्यूनता होती होनेसे अर्वाक् मण्डलमें 5304 54 मुहूर्त गतिमान होता है / तत्पश्चात् क्रमशः उत्तरायणमें पुनः आनेसे पूर्ववत् मुहूर्त गतिमान विचार लेना, अथवा दूसरे मण्डलकी लेकर दूसरी रीतसे मुहूर्त गतिमान लाना हो तो पूर्वपूर्वके प्रत्येक मण्डलके परिधिमें 18 योजन वृद्धि होती होनेसे केवल 18 योजनकी मुहूर्तगति पानेको 60 से बटा करे, 18 से बटा (भाग) न होनेसे 18460 = 1080 अंश आए उसे 60 मुहूर्त बटा करनेसे 34 प्रमाण मुहूर्त गति प्रतिमण्डलमें (पूर्व पूर्वके मण्डलकी मुहूर्तगतिमें ) वृद्धिवाली होती है / इति प्रतिमुहूर्तगतिनामक षष्ठद्वार प्ररूपणा //
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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