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________________ 246 ] बृहत्संग्रहणीरत्न हिन्दी [ गाथा 86-90 घटीयन्त्रके क्रममें (विपरीत) जिस ठिकाने पर जाते जितना समय कम किया था, पुनः लौटने पर उस उस स्थान पर उतना बढाते जाना जिससे पुन: बम्बई आने पर बम्बई स्टान्डर्ड टाइम मिल जाएगा। यह नोट (Note) शास्त्रीय कथनका सम्पूर्ण समर्थन करता है, यह निःशंक बात है। इस परसे 18 मुहूर्त्तका दिनमान विवक्षित उन क्षेत्रोमें सूर्योदयसे सूर्यास्त तक अस्तित्व रखनेवाले प्रकाशाश्रयी लेनेका है। शंका-यहाँ जिज्ञासुको शायद शंका हो कि सर्वाभ्यन्तरमण्डलमें गति करता सूर्य जब निषधपर्वत पर आवे तब भरतक्षेत्रमें होता उदय कितनी दूरसे दीखे ? . . समाधान -इसके समाधानमें समझना कि-निषध पर सूर्य आवे तब किरणोंका प्रसार बेटरीके प्रकाशवत् सूर्यकी सम्मुख दिशामें ही हो ऐसा नहीं होता, परन्तु प्रकाश तो चारों दिशाओंमें होता है, उसमें मेरुकी तरफ 44820 यो०, लवणसमुद्रकी दिशाकी तरफ 33333 3 यो० ( द्वीपमें 180 यो ) जब कि उत्तर तरफ-सिद्धशिला, अर्धचन्द्र कि तीरकमठाकारमें भरतके मानवीको वह सूर्य 47263 % यो० दूरसे दीखता है और उस : सूर्यस्थानकी पिछली दिशामें ऐरवतकी तरफ भी मण्डलाकारमें उतने ही प्रमाणमें किरणोंका प्रसार हो। वर्तमान पाश्चात्य देशोंका समावेश कहाँ करें ? प्रश्न-वर्तमान एशिया-योरप-अफ्रिका-आस्ट्रेलिया आदिका समावेश जैनदृष्टिसे माने जाते जम्बूद्वीपके ( अथवा जम्बूद्वीपके सात क्षेत्रोंमेंसे ) एक भरतक्षेत्रवर्ती छः खण्डों मेंसे किन खण्डोंमें होता है ? उत्तर-वैताढय पर्वत तथा वैताढय पर्वतको भेदकर लवणसमुद्र में मिलनेवाली गंगा तथा सिन्धुसे भरतक्षेत्रके छ: विभाग हुए हैं। उन छः विभागोंमेंसे नीचेके तीन विभागोंमें (दक्षिणार्ध भरतमें ) पांचों देशोंका समावेश मानना यह उचित लगता है। और इस तरह मानने में कोई विरोध आता हो ऐसा नहीं लगता, क्योंकि भरतक्षेत्रकी चौडाई 526 यो० 6 कला है और नीचेके अर्ध विभागमें रहे तीन खण्डोंकी चौडाई समग्र प्रमाणकी अपेक्षा अर्ध प्रमाणसे न्यून प्रमाण है, तो भी पाश्चात्य विद्वान दक्षिण ध्रुवसे उत्तर ध्रुवका जितने मील प्रमाणका अन्तर मानते हैं उससे जरूर दक्षिणार्ध भरतके तीन विभागोंका प्रमाण विशेषाधिक है, क्योंकि पूर्व समुद्रसे-पश्चिम समुद्र पर्यंत भरतक्षेत्रकी लम्बाई 14471 14 योजन प्रमाण है। जैन गणितके अनुसार 400 कोसका एक योजन होनेसे उसके मीलोंकी संख्या 5788400 है / जब कि समग्र पृथ्वीके एक छोरसे दूसरे
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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