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________________ 236 ] बृहत्संग्रहणीरत्न हिन्दी .[गाथा 86-90 बाह्यमण्डलमें पहुँचे तब उतनी ही 6 मुहूर्त प्रमाण वृद्धि सर्वाभ्तन्यरमण्डलके 12 मुहूर्त रात्रिमानमें करनेसे 18 मुहूर्त प्रमाण लम्बी रात्रि सूर्य सर्वबाह्यमण्डलमें हो तब होती है। इस तरह दिनमानमें न्यूनता और रात्रिमानमें वृद्धि दक्षिणायन' प्रसंगमें हुई / इस तरह सर्वबाह्यमण्डलमें पहुँचे सूर्य जब उस अंतिम मण्डलसे संक्रमण करके उसके पूर्वके-( सर्वाभ्य०मण्डलकी अपेक्षा) १८३वें मण्डलमें दक्षिणवर्ती उत्तरार्द्धमण्डलमेंउत्तरवर्ती दक्षिणार्द्धमण्डलमें प्रवेश करें तब उत्तरायण शुरू होता होनेसे तथा दिवस वृद्धिंगत होनेवाला होनेसे (न्यून हुए) दिनमानमें दो मुहूर्ता शकी वृद्धि सर्वबाह्यमण्डल गत जो दिनमान था उसमें करते जाना और उतने ही प्रमाण हे मुहूर्ता शकी सर्वबाह्यमण्डलके रात्रिमानमें प्रतिमण्डल क्रमशः कम करते जाना, इस तरह दिनमान बढ़ता जाए और रात्रि घटती जाए, ऐसा करते करते जब वे दोनों सूर्य दक्षिणसे उत्तर तथा उत्तरसे दक्षिणार्द्धके मण्डलोंमें प्रथम क्षणसे प्रवेश करते करते, उत्तरमें रहे सर्वाभ्यन्तरमण्डलमें प्रथमक्षणमें आवे, तब पूर्व 18 मुहूर्त प्रमाणका जो दिनमान और 12 मुहूर्त प्रमाणका रात्रिमान कहा था वह यथार्थ आ जाए / इस तरह 183 अहोरात्रिसे प्रथम दक्षिणायन समाप्त होनेके बाद .. उतने ही (183) अहोरात्रसे उत्तरायण समाप्त हो, इन दोनों अयनोंका .(6+6 मास कालसे) एक सूर्य संवत्सर भी समाप्त हो / यहाँ इतना विशेष समझना कि-जब सूर्य सर्वाभ्यन्तरमण्डलमें हो तब बड़ेसे बड़ा 18 241 मुहूर्त्तप्रमाण दिन होता है (शास्त्रीय गणितसे प्रथम वर्ष आषाढ़ी पूर्णिमाके दिन) और सर्वबाह्यमण्डलमें सूर्य हो तब छोटेसे छोटा 12 मुहूर्तप्रमाण दिन होता है / (शास्त्रीय गणितसे प्रथम वर्षमें माघ मासका छठा दिवस / ) इस तरह जब सूर्य सर्वाभ्यन्तरमण्डलमें हो तब रात्रि कमसे कम 12 २४२मुहूर्तप्रमाण हो (पहले वर्ष हमारी शास्त्रीय आषाढ़ी पूर्णिमाको ). और जब सर्वबाहमण्डलमें हो तब रात्रिमान अधिकांश 18 मुहूर्त्तका हो (पहले वर्ष शास्त्रीय माघ वदि 6 को ) इससे 241. सर्वाभ्यन्तरमण्डलमें सूर्यकी गति पूर्णिमा-मासके अनुसार और जैन पंचांगके अनुसार दूसरे आषाढ सुदि पूर्णिमाको, सावन वदि द्वादशीको, सावन सुदि ९वींको, सा० वदि छठको और सा० सुदि तीजको ( उन्हीं नियत मास-तिथिओंमें) हो और उसी समय 18 मुहूर्त्तप्रमाण दि० और 12 मुहूर्त्तप्रमाण रात्रिमान हो और उन दिनोंमें प्रावृट्ऋतुका प्रथम दिवस और ३१वा दिवस अथवा ३१वीं तिथि ही होती है / और वह दिवस या तिथि प्रायः पूर्ण हुई होती है / 242. तब हेमन्तऋतु माघमास पूर्णिमा-मास तथा जैन पंचांगके अनुसार मृग. वदि 6, माघ सुदि 3, पौष सुदि 15, माघ वदि 12, माघ सुदि 9 इन्हीं नियत दिनोंमें 12 मुहूर्त दिनमान होता है और हेमन्तऋतुका ३१वा दिवस अथवा ३१वीं तिथि युग प्रारम्भकी अपेक्षासे जानें /
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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