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________________ संवत्सरके प्रत्येक रात्रि-दिवसोंकी प्रमाण प्ररूपणा ] गाथा 86-90 [235 पहुँचा होता है और सर्वबाह्यमण्डलके द्वितीय मण्डलसे आरम्भ होते उत्तरायण कालमें (सूर्य ज्यों ज्यों सर्वबाह्यमण्डलोंमेंसे सर्वाभ्यन्तरमण्डलों में प्रवेश करता जाए त्यो त्यों) दिवस क्रमशः वृद्धिंगत होता जाता है / और यह सूर्य जब सर्वाभ्यन्तरमण्डलमें प्रथम क्षण पर आवे तब उत्तरायणकी समाप्तिके अंतिम मण्डलमें आ पहुँचा ऐसा कहा जाता है, अतः उस अंतिम मण्डलमें दिनमान उत्कृष्टमें उत्कृष्ट अठारह मुहूर्त प्रमाण हो यह सहज है / तत्पश्चात् सर्वाभ्यन्तरमण्डलमें आ चूके सूर्य दक्षिणायनका आरम्भ करते हुए सर्वबाह्यमण्डलके स्थानकी तरफ जानेकी इच्छासे ज्यों ज्यों अन्य अन्य मण्डलमें गति करते जाते त्यो त्यों निरन्तर क्रमशः दिन घटता जाता, अतः जब वे दोनों सूर्य सर्वाभ्यन्तर मण्डलको घूमकर नूतनसंवत्सर करनेवाले द्वितीय मण्डलमें प्रथम क्षणमें प्रवेश करे तब एक ही मण्डलके आश्रयी, सूर्यकी गति वृद्धि में एक मुहूर्त्तके इ. भाग मुहूर्त्तका दिनमान कम हो जाता है, जब कि दूसरी बाजू पर सर्वाभ्यन्तरमण्डलमें जो रात्रिका प्रमाण था उसमें उतनी ही 2 भाग मुहूर्तकी प्रथम क्षणमें वृद्धि होती जाए [ क्योंकि अहोरात्रिका सिद्ध 24 घण्टे 30 मुहूर्त्तका जो प्रमाण है वह तो यथार्थ रहना ही चाहिए ], उसी तरह वह सूर्य जब नूतन सूर्यसंवत्सरके दूसरे अहोरात्रमें अथवा तो सर्वाभ्यन्तरमण्डलकी अपेक्षा तीसरे मण्डलमें प्रथम क्षणमें प्रवेश कर ले तब से भाग दिनमान दूसरे मण्डलके दिनमान प्रमाणमेंसे प्रथम क्षणमें घटता है, [ सर्वाभ्यन्तर भाग मुहूर्त दिनमान घटता है ] जब कि रात्रिप्रमाणमें उतनी ही वृद्धि होती जाती है / इस तरह प्रत्येक मण्डलमें सर्वाभ्यन्तरमण्डलके 18 मुहूर्त प्रमाण दिनमानमेंसे अथवा पूर्वपूर्व मण्डलके दिनमानमेंसे एक मुहूर्त्तके इकसठवें दो भाग = दो भागकी प्रथम क्षणमें हानि होती होती और उस तरह पूर्वपूर्वके रात्रि प्रमाणमें प्रथम क्षणमें उतनी ही (2 भाग मु०की ) वृद्धि होती होती, दोनों सूर्य जब जब तथाप्रकारकी एक गति विशेषसे अनन्तर अनन्तर मण्डलोंमें धीरे धीरे आदि प्रदेशमें होकर, प्रवेश करते हुए सूर्यसंवत्सरमण्डलकी अपेक्षा १८३वें मण्डलमें (सूर्यसंवत्सरमण्डलका प्रारम्भ दूसरे मण्डलसे शुरू होता है अतः सूर्यसंवत्सरमण्डलकी अपेक्षासे १८४वाँ मण्डल १८३वाँ गिना जाता है) अर्थात् सर्वबाह्यमण्डलमें सर्वाभ्यन्तरमण्डलका दक्षिणवर्ती सूर्य उत्तरमें और उत्तरवर्ती सूर्य दक्षिणमें आवे तब पूर्व सर्वाभ्यन्तरमण्डलमें जो 18 मुहूर्त्तका दिनमान था उसमेंसे कुल 3 भाग मुहर्तप्रमाण दिनमान घटता है। उन भागोंका मुहूर्त निकालनेके लिए 366 भागको इकसठसे बटा करनेसे (भागनेसे) कुल• 6 मुहूर्त प्रमाण दिनमान सर्वाभ्यन्तरमण्डलके 18 मुहूर्त प्रमाणमेंसे घट जानेसे 12 मुहूर्त प्रमाण दिनमान सर्वबाह्यमण्डलमें सूर्य हो तब होता है / इस तरह पूर्वोक्त नियमानुसार सर्वाभ्यन्तरमण्डलके 12 मुहूर्त रात्रि प्रमाणमें वृद्धि करनी होनेसे सय
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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