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________________ 232 ] वृहत्संग्रहणीरत्न हिन्दी [गाथा 86-90 दिवस और जघन्य प्रमाण (12 मुहूर्तकी) रात्रि होती है। तत्पश्चात्के मण्डलमें उक्तवत् सूर्योदय विधि तथा दिनमान प्रतिमण्डल 2 भाग कम करके सोचना / इति सर्वाभ्यन्तरमण्डले सूर्योदयविधिः // इति प्रथमद्वारप्ररुपणा समाप्ता // २-प्रतिवर्ष सूर्यमण्डलोंकी गति तथा संख्याप्ररुपणासर्वाभ्यन्तरमण्डलमें रहे हुए सूर्योमेंसे एक सूर्य जब निषध पर अर्थात् भरतकी अपेक्षा वह दक्षिण-पूर्वमें (मेरुकी अपेक्षा उत्तर-पूर्वमें ) हो तब वह सूर्य मेरुके दक्षिणदिशावर्ती भरतादि क्षेत्रोंको प्रकाशित करता है, और दूसरा सूर्य उसके सामने. तिछी दिशामें नीलवन्त पर्वतके ऊपर होता है तथा वह उत्तर पश्चिम दिशामें गमन करता हुआ मेरुके उत्तरदिशावर्ती ऐरवतादि क्षेत्रोंको प्रकाशित करता है। इस तरह महाविदेहके लिए. सोच लेना। ये दोनों सूर्य अपने अपने मण्डलोंकी दिशाकी तरफ स्वस्थानसे मण्डलका प्रारंभ करें, और प्रत्येक सूर्य सर्वाभ्यन्तर-मण्डलको एक अहोरात्रिमें आधा आधा घूमकर पूर्ण करे / इससे प्रत्येक सूर्यको समग्र सर्वाभ्यन्तरमण्डल घूम लेनेके लिए दो अहोरात्रिका समय लगता है, परंतु प्रत्येक मण्डलको दोनों दोनों सूर्योंको पूर्ण करनेका होता है अतः प्रत्येक सूर्यको अर्ध अर्ध मण्डल चारके लिए प्राप्त होता है। (अतः जिस जिस दिशामें सूर्य हो उसे दिशागत क्षेत्रमें एक एक अहोरात्रि काल अर्ध अर्ध मण्डल सूर्य चरता जाए वैसे वैसे : प्राप्त होता जाए।) ___इस सर्वाभ्यन्तरमण्डलकी प्रथम अहोरात्रि उत्तरायणकी अन्तिम अहोरात्रि कहलाती है। इस तरह दोनों सूर्य दो अहोरात्रि कालसे सर्वाभ्यन्तरमण्डलको पूर्ण करके जब दोनों सूर्य दूसरे मण्डलमें प्रथम क्षणमें प्रवेश करे तब वह मण्डल भी पूर्ववत् (प्रथम मण्डलकी तरह) प्रत्येक सूर्यको अर्ध अर्ध चारके लिए प्राप्त होता है और दोनों सूर्य उस मण्डलको दो अहोरात्रि काल होने पर पूर्ण करते हैं, इस तरह इस दूसरे मण्डलकी जो अहोरात्रि वह २३“शास्त्रीय नूतन-संवत्सरका पहला (शास्त्रीय सावन वदि प्रथमा, अपनी गुजराती आषाढ वदि प्रथमासे ) अहोरात्रि कहलाती है। 238. हाल व्यवहारमें नूतन वर्षका प्रारंभ किसी जगह पर कार्तिक तथा किसी जगह पर चैत्र मासके शुक्ल पक्षकी प्रतिपदासे गिना जाता है। कार्तिक माससे वर्षका प्रारंभ गिननेकी यह प्रवृत्ति विक्रमराजाके समयसे शुरू हुई है / जो राजा प्रजाको अनृणी ( ऋण रहित ) करे उसी राजाका संवत्सर प्रजाजन खुश होकर प्रवर्तित करें ऐसी प्रथा है / विक्रमने वैसा किया था। ____ इस कार्तिक माससे शुरू होते वर्षारम्भके दिन पर सूर्य युगमर्यादाके अनुसार पहले वर्षमें 104 या 105 वें मण्डलमें, दूसरे वर्षमें 93 वें, तीसरे वर्षमें 81 वें, चौथे वर्षमें 89 वें और पांचवें वर्ष 87 वें मण्डलमें होता है, यह स्थूल गणित होनेसे कदाचित् 0 // या 1 मण्डलसे अधिक तफावतका सम्भव हो सकता है /
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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