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________________ दक्षिणायन-उत्तरायण प्रसंग पर सूर्यकी मण्डलोंमें गति ] गाथा 86-90 [ 220 अहोरात्रि अवसाने 2 यो० 6 भाग २३°क्षेत्र व्यतिक्रमसे और दिनमानमें भाग मु०की हानि करता हुआ, वह सूर्य दक्षिणाद्ध मण्डलको पसार करके पुनः दक्षिण दिशागत आए हुए तीसरे अर्धमण्डलकी सीमा-कोटीके ऊपर प्रथम क्षणमें आवे / इस तरह निश्चयसे उक्त उपायसे उस उस मण्डलके आदि प्रदेशमें प्रविष्ट होकर प्रथम क्षणसे आगे आगे धीरे धीरे हरएक (दक्षिण पूर्वगत मण्डलों मेंसे उत्तर पश्चिमगत मण्डलोंमें, उत्तरपश्चिमगत मण्डलोंमेंसे दक्षिणपूर्वगत मण्डलोंमें ) अर्ध अर्ध मण्डलों में किसी एक ऐसे प्रकारकी विशिष्ट गतिके गमनसे संक्रमण-परिभ्रमण करता हुआ, उत्तरसे-दक्षिणमें और दक्षिणसे उत्तर में गमनागमन करता, प्रति अहोरात्रिमें 2 यो० 48 भाग क्षेत्र बिताता, प्रतिमण्डलमें उस उस उत्कृष्ट दिनमानमेंसे / भागकी हानि करता हुआ, जब जघन्य-रात्रिमानमें उतनी ही वृद्धिमें निमित्तरूप होता, ऐसा वह सूर्य सर्वाभ्यन्तरमण्डलकी अपेक्षासे उत्तरदिशागत आए हुए १८२वें मण्डलमें बहिर्भूत सर्वबाह्यमण्डलमें उत्तरार्द्धमण्डल तक पहुँचता है / इसी तरह सर्वबाह्यमण्डलसे आया हुआ उत्तर पश्चिम दिशावर्ती सूर्य भी जब सर्वाभ्यन्तरके उत्तरार्द्ध मण्डलमें प्रथम क्षणमें आकर, प्रथम क्षणसे ऊर्ध्व धीरे धीरे किसी ऐसे प्रकारकी गतिविशेषसे वह सर्वाभ्यन्तरके उत्तरार्द्ध मण्डलमेंसे संक्रमण करके पूर्ववत् सर्व व्यवस्था करता हुआ द्वितीय दक्षिणार्ध मण्डलकी कोटीके ऊपर (नूतन संवत्सरके आरम्भ समय पर) आता है। इस तरह वह सूर्य वहाँसे-उत्तर पश्चिमगत मण्डलोंमेंसे दक्षिण पूर्वगत मण्डलों में, दक्षिणपूर्वगत मण्डलोंमेंसे उत्तर पश्चिमगत मण्डलोंमें एक एक अहोरात्रि पर्यन्त 32 भाग दिनमानकी हानिमें कारणभूत होता हुआ, प्रत्येक मण्डलमें 2 यो०१६ भाग क्षेत्र व्यतिक्रान्त करता हुआ आगे आगेके अर्द्ध अर्द्ध मण्डलोंकों सीमामें प्रथम क्षणमें प्रवेश करता करता, धीरे धीरे उन मण्डलोंको स्वचारसे चरता हुआ सर्वाभ्यन्तरमण्डलकी अपेक्षासे 182 अहोरात्रि द्वारा दक्षिण तरफके १८२वें सर्वबाह्यमण्डलमें आता है / इस तरह सर्वाभ्यन्तरमण्डलसे संक्रमण करके आए हुए दोनों सूर्य जब सर्ववाह्यमण्डलमें * उत्तर-दक्षिण दिशामें वर्तित होते हैं तब दिनमान जघन्य 12 मुहूर्त्तका और रात्रिमान उत्कृष्ट अठारह मुहूर्त्तका होता है। ___. इसी तरह सर्वबाह्यमण्डलमें प्रथम क्षणमें आए हुए दक्षिण तथा उत्तरदिशा स्थानवर्ती सूर्य प्रथम क्षणसे आगे आगे तथाविध गतिसे धीरे धीरे गति करते हैं उनमें से उत्तर दिशागत सूर्य एक अहोरात्रि पर्यन्त 2 यो० 48 भाग जितना चरक्षेत्र व्यतिक्रम हो तब ___237. इस सम्बन्धमें अन्यमतकारों की विपरीत 11 प्रतिपत्ति हैं वैसे ही दिन-रात्रिमानमें 18. मु० गतिमें 3, तापक्षेत्र विषयमें 12, उसकें संस्थान विषयमें 16, लेश्यामें 20, मण्डलपरिधिमें 3, मण्डल संस्थानमें 8 जम्बू-अवगाहनामें 5, इस तरह अलग अलग विषय पर अलग अलग विपरीत मान्यताएँ हैं. वे यहाँ न देते हुए श्रीसूर्यप्रज्ञप्तिमेंसे देख लेनेकी सलाह देते हैं / .
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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