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________________ 222 ] बृहत्संग्रहणीरत्न हिन्दी [ गाथा 86-90 . [अब यहाँसे अन्य ग्रन्थोंमें मण्डलोंके सम्बन्धमें ज्ञानसमृद्धि अति पुष्ट बने, जिज्ञासावृत्तिको तृप्त करे ऐसा अधिकार आता है / वह अधिकार स्पष्टतासे यहाँ दिया गया है / ] उन उन क्षेत्रोंमें उदयास्तविपर्यासका हेतु-- भरतक्षेत्रको छोड़कर अन्य अन्य सर्व क्षेत्रों में दिवस और रात्रिके प्रमाणके तफावतके लिए, और इससे उत्पन्न होते दूसरे अनेक विपर्यासोंके कारणोंके लिए, प्रत्येक क्षेत्राश्रयीनियमित रूपसे उदयास्तादि काल आदिका वर्णन करना तो अशक्य है / साथ ही सर्व स्थल पर सूर्यका उदय एक ही समय पर और अस्त भी एक ही समय पर होता हो वैसा भी नहीं है, परन्तु सूर्यकी गति ज्यों ज्यों कला-कला मात्र आगे बढ़ती जाए, त्यों त्यों आगे आगेके उन उन क्षेत्रों में प्रकाश होता जाए / तदवसरे उदयत्व कहा जाए और पश्चात् पश्चात्क्रमशः उन उन क्षेत्रोंमें सूर्य दूर दूर होता जाए तब 'अस्तपन' कहलाए / सूर्य वास्तविक रूपमें चौबीसों घण्टे प्रकाशमान ही होता है, उसे उदयास्तपन होता नहीं है, लेकिन दूर जाने पर वह और उसका प्रकाश नहीं दीखता तब, 'अस्त' शब्दका मात्र व्यवहार किया जाता है और जब दूसरा सूर्य देखते हैं तब 'उदय'का व्यवहार किया जाता है। शंका-जब ऐसी अनियमित व्यवस्था बताई तो क्या हरएक क्षेत्राश्रयी सूर्यका : उदय और अस्त अनियमित ही होता है ? समाधान-हाँ, अनियमितत्व ही है, ज्यों ज्यों समभूतलासे 800 योजन ऊँचा ऐसा सूर्य समय समय पर जिन जिन क्षेत्रोंसे आगे आगे बढ़ता जाए उन उन क्षेत्रों के पीछेके दूर दूरके क्षेत्रोंमें सूर्यका प्रकाश अगले क्षेत्रमें बढ़नेसे वहाँ प्रकाशका अभाव बढ़ता जाए और अनुक्रमसे उन उन क्षेत्रोंमें रात्रिका आरंभ होता जाए, इससे सूर्यके सर्व सामुदायिक क्षेत्राश्रयी उदय और अस्तका अनियमितत्व ही है, लेकिन यदि स्वस्व क्षेत्राश्रयी सोचें तो तो उदय तथा अस्त लगभग नियमित है, क्योंकि हम भी अगर भरतक्षेत्रके मध्यभागमें खड़े रहकर देखेंगे तो भरतक्षेत्रमें आज जिस समय सूर्यका उदय हुआ और जिस समय अस्त हुआ, उसी सूर्यको अब हम कल देखेंगे तो भी गत दिनके उदयास्तका जो समय था लगभग वही समय आजके सूर्यके उदयास्त समयका हो, लेकिन ऐसा तब बनता है कि जब सूर्य अमुक मण्डलोंमें हो तब अमुक दिनोंमें इस तरह लगभग एक ही अवसर पर उदय तथा एक ही अवसर पर लगभग अस्त हो, परन्तु तदनन्तर वह सूर्य जब अन्य अन्य मण्डलोंमें जैसे जैसे प्रवेश करता जाए तब क्रमशः सूर्यके उदय-अस्त कालमें हमेशा घट-बढ़ होती रहती है, अर्थात् जब जब सूर्य सर्वाभ्यन्तरमण्डलमें हो तब दिवसका उदय जलदी होने पावे और अस्त भी देरीसे होनेके कारण रात्रि छोटी हो (माघमास हेमन्तऋतु) तथा जब सूर्य सर्वबाह्यमण्डलमें हो तब उदय देरीसे और
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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