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________________ 220 ] बृहत्संग्रहणीरत्न हिन्दी [गाथा 86-90 वैसे ही (क्षेत्र-अपेक्षासे) मेरुकी दूसरी बाजू पर देखें तो ऐवत सूर्यके बयासठ सर्वाभ्यन्तरमण्डलसे लेकर जम्बूजगती पर्यन्त 180 योजनका चारक्षेत्र द्वीपमें गिननेका स्पष्ट है अतः सर्वाभ्यन्तरमण्डलसे लेकर १७३वें यो०से दृष्टजगती शुरु होती है, ( उसमें मध्य [ बिचकी ) दृष्ट जगती पहले मूल जगतीके चार योजनमें ) वह १७३से दृष्टजगती तकके चार योजनमें गणितके हिसाबसे ६३वा मण्डल पूर्ण उदयवाला और ६४वा मण्डल 26 अंश जितना उदय पाता है, इस दृष्ट जगतीके प्रारम्भसे वह (कुल) जगतीके ही पर्यन्त भाग (173 से 180 यो०) तक सोचे तो भी 63-64-65 ये तीन मण्डल जगतीके ऊपर आ सकते हैं। अब संपूर्ण जगती आश्रयी विचार करने पर प्रथम संपूर्ण जगती 169 से 180 यो० अर्थात् बारह योजनकी है, [और किसी भी द्वीप-समुद्रका जगती क्षेत्रप्रमाण लघु क्षेत्रसमास मूलमें कहे ‘णिअणिअ दीवोदहि मझगणिय मूलाहिं ' इस जगतीके विशेषण पदसे उस विशेष द्वीपसमुद्रके कथित प्रमाणमें अन्तर्गत गिननेका होनेसे ] सर्वा० मं० से लेकर 168 यो० पूर्ण होनेपर 61 मंडल संपूर्णतः पूर्ण होते हैं; ये 168 योजन पूर्ण होनेपर वास्तविक जगतीका प्रारंभ (मूल विस्तारसे) होता है, उस मूल जगतीके प्रारंभसे 169-172 तकके चार योजनके जगतीक्षेत्रमें ६२वा मण्डल पूर्ण उदय पावे और ६३वां मण्डल 1 यो० 13 भाग जितना उदय पाकर १७३वें यो० से आरंभ होती 176 यो० तककी दृष्ट जगतीके ऊपर 1 यो० 35 भाग दूर 63 वा मंडल पूर्ण होता है। अवशिष्ट रहे दृष्ट जगती क्षेत्रमें 64 वा मंडल 2 यो० 26 भाग जितना उदय पाकर शेष रहे हुए अंतिम चार योजन प्रमाण-१७७ से 180 यो० तकके जगतक्षेत्र पर एक योजनके 22 भाग बीतने पर 64 वा मंडल हो, तत्पश्चात उसी जगतीके पर ६५वा मण्डल सम्पूर्ण (2 यो० 48 भाग) उदयवाला होता है, ये 65 मण्डल पूर्ण होने पर जम्बूद्वीपके 65 मण्डलोंका कथित 179 यो० 9 अंश जो चारक्षेत्र वह यथार्थ आ जाए, और शेष बावन अंश प्रमाण जगतीके ऊपर लवणसमुद्रमें आते 66 वें मण्डलका बावन अंश जितना उदयक्षेत्र समझना / ____ इससे क्या हुआ ? कि, 169 से 180 यो० वी 12 यो० प्रमाणके जगती क्षेत्रके पर 62-63-64-65 ये चार मण्डल सम्पूर्ण उदयवाले हो / (66 वाँ बावन अंश उदयवाला हो) अब यहाँ विचारणीय यह है कि-शास्त्रकारने जगती शब्दसे 177 से 180 इन अंतिम चार योजनका जगतीक्षेत्र गिना हो वैसा लगता है, क्योंकि अंतिम जगतीके स्थानमें ऊर्ध्व भागमें 64 वां मंडल 22 अंश जितना उदय पाकर संपूर्ण भ्रमण करके 65 वें मं०का संपूर्ण उदय होकर बावन अंश जितना 66 वें का भ्रमण वहाँ हो, इस हिसाबसे 63 मंडल निषध नीलवंतके ऊपर और 64-65 ये दो मण्डल 'ही अंतिम जगतीके स्थानमें हों, यह कथन वास्तविक है; तो भी उपरोक्त कथनके अनुसार वास्तविक रूपसे तो. 63-64 मण्डल दृष्ट जगतीके ऊपर है, और जहाँ 64-65 वो है वहाँ तो वास्तविक जगतीका ढाल है। यद्यपि इससे अगती माननी हो तो माने, परन्तु 63-64 मण्डलके योग्य ऐसी दृष्ट जगती स्थानको छोड़कर जगतीका दाल क्यों माने ? यदि जगतीके दालको भी गिनना हो तो तो फिर 169 से 180 यो०
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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