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________________ छः महापर्वत तथा द्रहप्रमाणका यन्त्र ] गाथा 86-90 [ 205 गहराई 0 0 0 1000 0. 0 0 0 0 0 0 0 3 पल्योपम, आरा पहला, हर तीन दिन पर अरहरके दाने जितने आहारकी इच्छा और 49 दिवस सन्तान पालना समझना / छ: महापर्वत तथा द्रहप्रमाण यन्त्र पर्वतका। द्रहकी द्रहका पर्वतोंके नाम | ऊँचाई द्रहका नाम दसगुनी विस्तार / प्रमाण दीर्घता कितना? लघु हिमवन्त | 100 यो. पद्म द्रह 1000 योजन 500 योजन शिखरी पर्वत 100 ,, पुंडरीकद्रह 1000 महाहिमवंत पर्वत 200, महापद्मद्रह | 2000 , रुकमी पर्वत | 200 ,, | महापुंडरीकद्रह | 2000 ,, 1000 निषध पर्वत / 400,, तिगिछिद्रह / 4000 | 2000 | नीलवंत पर्वत / 400 ,, केसरीद्रह | 4000 अब पर्वतके विषयमें इतना विशेष समझना कि भरतके उत्तरवर्ती जो ‘हिमवन्त' और 'ऐश्वत 'के उत्तरवर्ती जो ‘शिखरी'-ये दोनों पर्वत पूर्वसमुद्रसे पश्चिमसमुद्र तक लम्बे हैं, इन पर्वतोंके अन्तिम भागमें एक-एक दिशाके मुखकी तरफ पर्वतकी दो दो दाढाएँ हैं और वे रणसिंधाकारमें लवणसमुद्रमें गई हैं / वैसे दूसरी दिशामें भी दो दाढाएँ . स्वदिशामें लवणसमुद्रमें गई हैं। इस तरह दो पर्वतोंकी दोनों दिशाओंकी होकर आठ दाढाएँ हैं / एक-एक दाढाके ऊपर सात सात अन्त:प हैं, अतः आठ दाढाओंके मिलकर 56 अन्तद्वीप२१८ होते हैं। इस अन्तीपमें युगलिक ही रहते हैं, उनके शरीरकी ऊँचाई 800 धनुष और आयुष्य पल्योपमका असंख्यातवाँ भाग होता है / एकतरा आहारकी इच्छा तथा 79 दिवस 'अपत्यपालना होती है। - इन अन्तीपोंको गर्भज मनुष्योंके जो 101 क्षेत्र गिने जाते हैं उनकी गिनतीमें लेने हैं। यह जम्बूद्वीप कि जिसका वर्णन ऊपर किया था वह द्वीप 12 योजन ऊँची रत्नमय जगतीसे परिवृत्त है। इस जगतीके पूर्वमें 214. विजय', पश्चिममें ‘जयन्त,' उत्तरमें 'अपराजित' और दक्षिणमें 'वैजयन्त' इस तरह चार द्वार हैं, प्रत्येक द्वार चार योजन चौड़ा और दोनों बाजू पर पाव (1) कोस चौडी चौखटोंवाला है; अतः हरएक 218. विशेष वर्णन क्षेत्रसमास तथा चार बृहद्वृत्तिसे देखना / / 219. विजयादि नामके अधिपतिदेवके निवास परसे ये नाम पड़े हैं /
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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