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________________ 204 ] बृहत्संग्रहणीरत्न हिन्दी [ गाथा 86-90 क्षेत्र' आया है / इस क्षेत्रमध्यमें दोनों दिशाओंमें 'नरकान्ता' और 'नारीकान्ता' नदियाँ बहती हैं / तथा इस क्षेत्रके मध्यभागमें ही 'माल्यवन्त 'नामका वृत्तवैताढय आया है। इस क्षेत्रके पूर्ण होने पर तुरन्त ही महाहिमवन्त पर्वतके समान व्यवस्थावाला श्वेत चांदीका 'रुक्मि' पर्वत आया है / इस पर्वतके ऊपर 'बुद्धि' देवीके निवासवाला 'महापुंडरीकद्रह' आया है, उसका प्रमाण महापद्म द्रहके समान समझना / पर्वत पसार करनेके बाद ‘हरिवर्ष' क्षेत्रके समान व्यवस्थायुक्त 'हिरण्यवन्त क्षेत्र आया है / उसमें पूर्व में ‘सुवर्णकूला' और पश्चिममें 'रूप्यकूला' नदी है और इस क्षेत्रके मध्यमें 'विकटापाती' नामका वृत्तवैताढय आया है / इस क्षेत्रके पूर्ण होने के बाद तुरन्त ही हिमवन्तके जैसी व्यवस्थावाला 'शिखरी' पर्वत आया है / इस पर्वतके ऊपर 'लक्ष्मी' देवीके निवासस्थानवाला 'पुंडरीकद्रह ' पद्मद्रहवत् आया है / इस पर्वतसे आगे बढ़ने पर भरतक्षेत्र जैसी सर्व व्यवस्था तथा सर्व भावोंवाला ऐरवतक्षेत्र रहा है / उस उस कालमें वर्तित भावोंमें दोनों क्षेत्र परस्पर समान स्थिति धारण करनेवाले होते हैं / इस क्षेत्रके मध्यभागमें अयोध्या नगरी है, यह क्षेत्र भी रौप्यमय-दीर्घ वैताढयसे तथा गंगासिन्धु जैसी 'रक्ता' और 'रक्तवती' नदीसे 6 विभागवाला है। यह क्षेत्र समाप्त होने पर तुरन्त ही इस क्षेत्रकी तीनों दिशाओंसे स्पर्श करता हुआ पश्चिम लवणसमुद्र आता है / इस तरह पूर्व समुद्रके मध्यकिनारेसे निकलकर पश्चिम समुद्रके किनारे पर आते तक सर्व क्षेत्रके विस्तारको इकट्ठा करनेसे एक लाख योजन पूर्ण होता है, जिससे वहाँ जम्बूद्वीप क्षेत्र भी समाप्त होता है। महाविदेहक्षेत्रकी दोनों बाजू पर रहे 6 क्षेत्रों और 6 वर्षधर पर्वतोंमेंसे तीन तीन पर्वत तथा तीन तीन क्षेत्र समान प्रमाणवाले और व्यवस्थावाले हैं। यहाँ इतना समझना कि दक्षिणोत्तरके समान व्यवस्थावाले 'हैरण्यवन्त' और 'हैमवन्त' ये दो क्षेत्र युगलिक मनुष्य तिर्यंचोंके हैं / और उसमें रहनेवाले युगलिक मनुष्योंका शरीरप्रमाण 1 कोस, आयुष्य 1 पल्योपम२१७ अर्थात् तीसरे आरेके समान होता है / उन्हें एकतरा आँबले जितने आहारकी इच्छा होती है। वहाँ संतानकी परिपालना 79 दिनकी होती है / इस तरह अपत्यपालना करनेके बाद वे युगलिक स्वतन्त्र विहारी और भोगके लिए समर्थ होते हैं / पश्चात् उनका पालन करनेवाले माता-पिता अल्प ममत्व भाववाले होनेसे वे अपत्य कहाँ रहते हैं ? किस तरह बरतते हैं ? उस विषयक चिंता नहीं करते / इस तरह ‘रम्यक् ' और 'हरिवर्ष' इन दो क्षेत्रोंमें युगलिकोंका शरीरमान 2 कोस, आयुष्य 2 पल्यो०, दो दिनके आंतरे पर बोर जितने आहारकी इच्छा होती है और 64 दिवस सन्तानकी परिपालना होती है / देवकुरु और उत्तरकुरु इन दोनों युगलिक क्षेत्रोंमें युगलिकोंका शरीरप्रमाण 3 कोस, आयुष्य 217. जिन क्षेत्रोंमें जो जो आरा वर्तित हो, उस आराके युगलिकोंका स्वरूप अगाउ पल्योपम, सागरोपमके वर्णनप्रसंग पर कहा है वहाँ वैसे देख लेना /
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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