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________________ 20 ] बृहत्संग्रहणीरत्न हिन्दी [गाथा-३-४ वे भवनपति कहलाते हैं; यद्यपि असुरकुमार प्रथम निकायके देव २३बहुलतासे स्वकायमान प्रमाणवाले परमरमणीय चारों ओर भित्यादि आवरण रहित खुले महामण्डप होते हैं उनमें रहनेवाले हैं, भवनों में तो क्वचित् निवास करते हैं और शेष नागकुमारादि निकायके देव प्रायः भवनों में विशेषतः रहते हैं और कदाचित् आवासों में रहते हैं, तथापि सामान्यतः . विशेषतया भवनों में बसनेवाले होनेसे वे भवनपति देवोंके रूप में वर्णित हैं। [2] अवतरण:-निम्न दो गाथाओंसे भवनपति देव-देवियोंकी उत्कृष्ट आयु-स्थितिका वर्णन .. करते हैं चमर-बलि सारमहिअं, तद्देवीणं तु तिन्नि चत्तारि / पलियाई सड़ाई, सेसाणं नव-निकायाणं // 3 // दाहिण-दिव-पलियं, उत्तरओ हुँति दुन्नि देसूणा / तद्देवी-मद्धपलियं, देसूणं आउमुक्कोसं / / 4 / / गाथार्थ :-चमरेन्द्र और बलींन्द्रका अनुक्रमसे सागरोपम तथा सागरोपमसे कुछ अधिक उत्कृष्ट आयुष्य / उन दोनों इन्द्रोंकी देवियोंका व्रमसे सादेतीन पल्योपम तथा साढ़ेचार पल्योपम, शेष रहे नौ निकायोंके दक्षिण दिशामें रहे भवनपति देवोंका डेढ़ पल्योपम और उत्तरदिशाके भवनपति देवोंका कुछ न्यून दो पल्योपम और उनकी देवियोंका अनुक्रमसे आधा पल्योपम और कुछ न्यून एक पल्योपम-प्रमाण उत्कृष्ट आयुष्य है // 3-4 // विशेषार्थ:-भवनपति देव दस प्रकारके हैं, जो बात 19 वी गाथा-प्रसंग पर ग्रन्थकार कहनेवाले हैं / भवनपतिकी उन दसों निकायोंमें दक्षिण दिशाकी तरफका और उत्तरदिशाकी 23. प्रश्न: क्या स्वर्गवास प्राप्त कोई भी जीव मनुष्यअवतारमें शीघ्र ही अवतरित हो सकता है ? उत्तर:-स्वर्गलोक अर्थात् देवभूमिमें गये हुए जीव कमसे कम दस हजार वर्षकी जघन्यस्थिति भोगे बिना निश्चयरूप मरता नहीं / आजकल 'अमुक आत्मा देवलोक में गई' ऐसा लोग कहनेको तैयार होते हैं और उन्हीं स्वर्गमें गये हुओंका जन्म तुरंत ही अमुक स्थान पर अमुकके वहाँ हुआ इत्यादि भविष्याभिप्राय सम्बन्धमें चर्चाका उहापोह अखबारोंमें भी छपता है, परन्तु यह बिलकुल अज्ञानताका मिथ्या प्रलाप है। यदि उनका 'स्वर्गगमन', वह देवलोक स्थान समझकर कहा जाता हो तो उस देवलोकमें जानेवाले जीवको देवशय्यामें उत्पन्न होनेके बाद कमसे कम दस हजार वर्ष तो रहना ही पड़ता है। वैसी भवनपति या व्यंतरकी जातिमें उत्पन्न हआ हो तो, मनुष्यरूपमें तुरन्त कहाँसे जन्म ले सके ? हाँ, मनुष्यलोकमेंसे यदि उसने पूर्वमें मनुष्यगतिके योग्य आयुष्यादिका बन्ध पड़ा हो तो मनुष्यभवमें किसी भी स्थानपर वह जीव उत्पन्न हो सके यह बात संभवित मानना योग्य है, परन्तु मनुष्यभवमेंसे स्वर्गमें गई आत्मा मृत्यु पाकर तत्काल (दस हजार वर्ष * पहले) ही मनुष्यस्वरूप जन्म ले सके, इस बातको परमतारक श्री सर्वज्ञभगवन्तका सिद्धांत मान्य नहीं रखता /
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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