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________________ अढाईद्वीपाधिकार ] गाथा 86-90 [ 195 चन्द्रके 15 मण्डलोंमेंसे 10 मण्डल लवणसमुद्रमें और पाँच मण्डल जम्बूद्वीपमें निषध पर्वत पर हैं, इन मण्डलोंका परस्पर अन्तर प्रमाण पहले कहा गया है / // 9 // [प्र. गा. सं. 22] विशेषार्थ यहाँसे मण्डल-प्रकरणका अधिकार शुरू होता है / उसमें प्रथम निषध और नीलवंत पर्वतसे मण्डलों का प्रारम्भ माना गया है, तथा पुष्करादि द्वीप विषयक भी किंचित् अधिकार आनेवाला है / अत: उन पर्वतों तथा द्वीपके स्थानोंकी माहिती देना उचित समझकर प्रासंगिक अढाईद्वीपका किंचित् स्वरूप यहाँ जणाया जाता है प्रथम अढाईहीपाधिकार जम्बूद्वीपका वर्णन हम जिस क्षेत्रमें रहते हैं उस जम्बूद्वीपके सात महाक्षेत्रों से 'भरतक्षेत्र 'नामका एक महाक्षेत्र है। यह जम्बूद्वीप २०१प्रमाणांगुलसे 1 लाख योजनका और २०२थालीके समान गोलाकार जैसा अथवा २०३मालपुओके आकार जैसा है और उसका 204 परिधि अथवा उसकी जगतीका प्रमाण 31622 यो०, 3 कोस, 128 धनुष, 133 अंगुल है। गणितकी रीतिसे किसी भी वृत्तक्षेत्रके परिधिका प्रमाण अपने विष्कम्भकी अपेक्षासे त्रिगुणाधिक होता है; और उस २०५वृत्त पदार्थके २०व्यासका २०७वर्ग करके १०से गुना करके 20 वर्गमूल निकालनेसे उस क्षेत्र विषयक परिधिका प्रमाण आता है, जैसे कि जम्बूद्वीपका व्यास 201. हमारा जो अंगुल है उसे उत्सेधांगुल कहा जाता है और वैसे 400 (अथवा 100) उत्सेधांगुलसे ... एक प्रमाणांगुल होता है / 202. इणमो उ समुट्ठिो जम्बूद्दीवो रहंग संठाणो / विक्खभसय सहस्सं जोयणाणं भवे एक्कं / / (ज्यो० करं० ) * 203. तले जाते मालपुएको देखकर बिचके मालपुए जैसी जम्बूद्वीपकी कल्पना करें और चारों बाजूके घी की लवण समुद्रके रूपमें कल्पना करें / 204. किसी भी वृत्त (गोल) पदार्थका घेरा परिधि कहा जाता है / 205. जिस पदार्थको किसी भी दिशासे या छोरसे आमने-सामने नापने पर सर्व जगह पर एक समान नाप आवे तो वह वृत्त कहा जाता है / 206. वृत्त वस्तुकी समान लम्बाई-चौड़ाईके प्रमाणको विष्कम्भ अथवा व्यास कहा जाता है / 207. दो समान संख्याका परस्पर गुना—'वर्ग' कहलाता है / 208. कोई भी दो संख्याएँ किन दो समान संख्याके गुना जितनी हैं ? उसकी मूल संख्या खोज निकालनेकी जो रीति है वह वर्गमूल (करणि ) कहा जाता है /
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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