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________________ 194 ] बृहत्संग्रहणीरत्न हिन्दी " [गाथा 86-90 . मण्डलोंका किंचित् वर्णन नक्षत्र परिशिष्टमें दिया है / और तारों तथा ग्रहोंके मण्डलोंका वर्णन अप्राप्य होनेसे उन विषयक उल्लेख न करके अब चन्द्र-सूर्य मण्डल विषयक अधिकार शुरू किया जाता है / यह अधिकार संक्षिप्तमें और विस्तारपूर्वक कहा जाएगा / पन्नरस चुलसीइ सयं, इह ससि-रविमण्डलाई तक्खित्तं / .. जोयण पणसय दसहिअ, भागा अडयाल इगसट्टा // 86 // ससि-रविणो लवणम्मि य, जोयण सय तिणि तीसअहियाई / असियं तु जोयणसयं, जम्बूद्दीवम्मि पविसति // 87 // तीसिगसट्ठा चउरो, एगिगसहस्स सत्तभइयस्स / पणतीसं च दुजोयण, ससि-रविणो मण्डलंतरयं / / 88 // [प्र. गा. सं. 20] . पणसट्ठी निसढम्मि य, तत्तियबाहा दुजोयणंतरिया / एगुणवीसं च सयं, सूरस्स य मण्डला लवणे // 89 // [प्र. गा. सं. 21] मण्डलदसगं लवणे, पणगं निसढम्मि होइ चंदस्स / मण्डल अन्तरमाणं, जाणपमाणं पुरा कहियं // 90|| [प्र. गा. सं. 22] गाथार्थ-इस जम्बूद्वीपवर्ती चन्द्रके 15 मण्डल हैं और सूर्यके 184 मण्डल हैं / और उन दोनोंके मण्डलोंका चारक्षेत्र (जम्बूलवणका होकर) 510 योजन और एक योजनके अडतालीस बटे इकसठ भाग जितना अधिक है / // 86 // इससे सूर्यका और चन्द्रका 510 यो०१६ भागका कुल जो चारक्षेत्र है उसमेंसे 330 योजन लवणसमुद्रमें है और लौटते वक्त ये दोनों ज्योतिषीविमान जम्बूद्वीपमें एकसौ अस्सी योजन तक प्रवेश करके रुक जाते हैं / यह उसका चारक्षेत्र बताया / / 87 // 35 योजन और एक योजनके इकसठ भागोंमेंसे तीस भाग और इकसठवें एक भागके सात भाग करके उनमेंसे चार भागका ( 35 यो० - भाग) परस्पर चन्द्र मण्डलका अन्तर होता है / और सूर्यके मण्डलोंका परस्पर अन्तर दो योजनका है।॥८८॥ [प्र. गा. सं. 20] ____तथा सूर्यके 184 मण्डलोंमेंसे 65 मण्डल जम्बूद्वीपमें हैं, उनमें 62 निषधपर्वतके ऊपर पड़ते हैं, जबकि तीन मण्डल उसी पर्वतकी बाहामें पड़ते हैं, और 119 मण्डल लवणसमुद्रमें पड़ते हैं / इन मण्डलोंका परस्पर अन्तर दो योजनका है / / 89 // प्र. गा. सं. 25]
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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