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________________ मनुष्यक्षेत्रके बाहर सूर्य-चन्द्रकी पंक्ति सम्बन्ध मतान्तर ] गाथा 83-85 [ 183 189 चन्द्र और 189 सूर्यकी संख्या प्राप्त होगी / इस तरह आठों पंक्तियोंके मिलकर कुल 13.37 चन्द्र और 1337 सूर्य (= कुल संख्या 2674) मनुष्यक्षेत्रके बाहरके अर्धपुष्करवर द्वीपमें रहे हैं / इस तरह उक्त दिगम्बरीय मतानुसार मनुष्यक्षेत्रके बाहर बाह्यपुष्करार्धवर्ती चन्द्र-सूर्यकी पंक्ति व्यवस्था दर्शाई है। - अब आगे आगेके द्वीप-समुद्रोंमें यावत् लोकान्त तक सूर्य-चन्द्रकी संख्या कितनी है ? यह बताया जाता है। // मनुष्यक्षेत्रके बाहर समग्र द्वीप-समुद्र विषयक चन्द्रादित्य संख्या विचार / / " ऊपर कहे अनुसार मनुष्यक्षेत्रके बाहरके अर्धपुष्करद्वीपमें आठवीं पंक्ति पूर्ण होने के बाद, पचास हजार योजन जानेके बाद पुष्करवरद्वीप समाप्त होता है। तदनन्तर पुष्कर समुद्रमें पचास हजार योजन जाने पर प्रथमकी तरह परिरयाकार (वलयाकार) चन्द्र-सूर्यकी पंक्तिका प्रारम्भ होता है / दूसरी चन्द्र-सूर्यकी वलयाकार स्थित पंक्तिका अन्तर एक लाख योजन प्रमाण ऊपर कहा है / वह इस तरह बराबर आता है / अब उस पुष्कर समुद्रमें स्थित प्रथम पंक्तिमें कितने चन्द्र-सूर्य हों ? इस विषयमें विचार करने पर ऐसा जणाया है कि-'प्रथम द्वीप अथवा समुद्रकी प्रथम पंक्तिमें जितने सूर्य और चन्द्रकी संख्या होती है उससे दुगुनी संख्या आगेके द्वीप अथवा समुद्रकी प्रथम पंक्तिमें होती है। समयक्षेत्रके बाहर अर्धपुष्करद्वीपकी प्रथम पंक्तिमें 145 चन्द्रों और 145 सूर्योकी संख्या होनेसे पुष्करसमुद्रकी प्रथम पंक्तिमें 290 चन्द्र १४५और 290 सूर्य होते हैं। ऐसा प्रत्येक . 195. द्वितीय दिगम्बर मतमें बताया कि इष्ट द्वीप अथवा समुद्रकी अन्तिम पंक्तिगत चन्द्रसे सूर्यकी संख्या आनेके बाद उस इष्ट द्वीप अथवा समुद्रसे आगेके द्वीप अथवा समुद्रमें स्थित प्रथम पंक्तिगत चन्द्र-सूर्यकी संख्या जाननेके लिए प्रथमके द्वीप अथवा समुद्रकी प्रथम पंक्तिगत चन्द्र-सूर्यकी संख्याको द्विगुण करें, और बैसा करनेसे (मनुष्यक्षेत्रके बाहरके पुष्कराधकी प्रथम पंक्तिमें 145 चन्द्र और 145 सूर्य होनेसे ) पुष्करोद'समुद्रकी प्रथम पंक्तिमें 290 चन्द्र और 290 सूर्य संख्या आई / यहाँ खास विचारणा उपस्थित होती है, क्योंकि दिगम्बर मतानुसार यह प्रथम बार ही कहा गया है कि यदि पंक्तिगत चन्द्र-सूर्यकी संख्या जाननी हो तो उसकी परिधि जाननेके बाद उसमें एक-एक लाख योजनके अन्तर पर चन्द्र और एक-एक लाख योजनके अन्तर पर सूर्य रह सके, अर्थात् चन्द्रसे सूर्यका अन्तर पचास हजार योजन, और चन्द्रसे चन्द्रका अथवा सूर्यसे सूर्यका अन्तर एक लाख योजन रहे वैसी व्यवस्था करते जितनी संख्या आवे उतनी विवक्षित पंक्तिमें चन्द्र-सूर्यकी संख्या जाने / अब हम सोचेंगे तो इस मतके अनुसार आगे आगेकी पंक्तियोंमें क्रमशः छः छः और सात चन्द्र-सूर्यकी वृद्धि करते मनुष्यक्षेत्रके बाहर पुष्करार्धमें आठवीं पंक्तिमें 189 चन्द्र और 189 सूर्य हैं / जब कि ऊपर कथित द्विगुण करनेकी पद्धतिसे पुष्करोदसमुद्रकी प्रथम पंक्ति (14542 =) 29. चन्द्र और 290 सूर्यकी संख्या कही जाती है। दो लाख योजनका विष्कम्भ अधिक होनेसे परिधिमें
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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