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________________ नक्षत्र चतुर्थ लघु परिशिष्टम् ] माथा 80-81 [ 173 प्रश्न-नक्षत्रबल कब अच्छा होता है ? * उत्तर-दिवसके पूर्वार्धभागमें तिथि तथा नक्षत्र सम्पूर्ण बलवान, तथा बादमें दुर्बल गिना जाता है, रात्रिके समय केवल नक्षत्र बलवान गिना जाए और दिवसके अपराध भागमें केवल तिथि ही बलवान गिनी जाती है; अतः व्यवहारसारमें कहा है कि 'तिथिर्धिष्ण्यं च पूर्वार्द्ध, बलबदुर्बलं ततः / नक्षत्रं बलवद्रात्रौ, दिने बलवती तिथिः // 1 // ' विशेषमें इन नक्षत्रों का प्रयोजन 'पौरुषी' प्रतीति-प्रहरका ज्ञान होनेके लिए है। इसके सिवा नक्षत्रकी सविशेष मुहूर्तगति, नक्षत्रके मण्डलोंका चन्द्रमाके मण्डलोंके साथ आवेश, उन मण्डलोंका दिशाओंके साथ चन्द्रयोग, उनके अधिष्ठायक देवता, उनके तारा विमानोंकी संख्या, ( उनकी आकृति ) उन मण्डलोंका चन्द्र-सूर्यके साथ संयोगकालका मान, उनके कुलादिकके नामोंकी विचारणा, उनका अमावस और पूर्णिमाके साथ योग, प्रतिमास अहोरात्रि सम्पूर्ण करनेवाले नक्षत्र कौन-कौन हैं यह प्रहर विचारणा, किस-किस मासमें कौन-कौन-सा नक्षत्र कितने कितने समय पर होता है ? इत्यादि सर्व व्याख्या, सविस्तररूपसे जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, सूयप्रज्ञप्ति तथा लोकप्रकाश और मण्डलप्रकरणादि ग्रन्थोंसे जान लें / , चतुर्थ परिशिष्टं समाप्त हुआ / /
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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