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________________ गंगा " . तिर्छालोकवर्ति क्रमशः द्वीप-समुद्र स्थापना ] जम्बू , जम्बू" जम्बू . पुनः –यहाँसे प्रत्येक शुभ वस्तुके नामवाले सर्व त्रिप्रत्यवतारी असंख्याता द्वीप-समुद्र, तथा प्रत्येक नामवाले द्वीप-समुद्र अन्तर-अन्तरसे असंख्यात आए हैं; जैसे किमूलद्वीप. मूलसमुद्र. मूलवरद्रीप. मूलवरसमुद्र. मूलवरावभासद्वीप. मूलवरावभाससमुद्र. __हार" हार , हार, हार, ' हार , . हार गंगा ,, गंगा, गंगा ,, गंगा , . गंगा ,, मेरु, जम्बू - - - - - - - - - - - - - - - - -अ-सं-ख्य-द्री-प-स-मु-द्रो- - - - इस तरह यहाँ असंख्यात द्वीप-समुद्र आए हैं। उनमें सबसे अन्तिम त्रिप्रत्यवतार सूर्य नामका द्वीप-समुद्र आया है / यथाअसंख्यातवाँ–सूर्यद्वीप. सूर्यसमुद्र. सूर्यवरद्वीप. सूर्यवरसमुद्र. सूर्यवरावभासद्वीप. सूर्यवरावभाससमुद्र. इति त्रिप्रत्पवताराः द्वीपसमुद्राः समाप्ताः // - अब यहाँ अन्तिम प्रत्येक नामवाले पांच द्वीप-समुद्र, वे ये 1. देवद्वीप-देवसमुद्र. 2. नागद्वीप-नागसमुद्र. 3. यक्षद्वीप-यक्षसमुद्र. 4. भूतद्वीप-भूतसमुद्र, अन्तिम 5. स्वयंभूरमणद्वीप और स्वयंभूरमणसमुद्र. " HSSEEKER समुद्र स्थापना यन्त्रं // सेसर
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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