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________________ कौनसा समुद्र किस द्वीपको घेरकर रहा है ? ] गाथा 71-74 [147 गाथार्थ-पहले जम्बूद्वीपको घेरकर-लपेटकर लवणसमुद्र रहा है। दूसरे धातकीखण्डको लपेटकर कालोदधि आया है। तत्पश्चात् पुष्करवर आदि द्वीपोंको लपेटकर उन उन द्वीपोंके नाम समान ही नामवाले समुद्र आए हैं [ 71 ] विशेषार्थ-जम्बूद्वीपवेष्टित प्रथम लवणसमुद्र आया है, तत्पश्चात् धातकीखण्डको लपेटकर रहा हुआ कालोदधि समुद्र है, तत्पश्चात् आए समुद्र जिन जिन द्वीपोंको लपेटे हुए हैं वे सब उस उस द्वीपके समान नामवाले ही जानें। सिर्फ अढाई द्वीपमें आए दो समुद्रोंका क्रम वैसा नहीं है अर्थात् फर्कयुक्त है, अन्यथा पुष्करद्वीपके चारों ओरका पुष्करसमुद्र, वारुणिवरद्वीपके चारों ओरका वारुणिवरसमुद्र इस तरह असंख्याता समुद्र द्वीपके समान नामवाले हैं। यावत् अन्तिम स्वयंभूरमण द्वीपको लपेटकर अन्तिम स्वयंभूरमण समुद्र आया है। लवणसमुद्र-इस समुद्रका पानी क्षारसे युक्त और अतः गलेमें असर करनेवाला तीक्ष्ण, कटुक, ज्वार-भाटा आदिसे टकराती लहरोंसे कलुषित, कीचड़युक्त बना हुआ और उसमें बसनेवाले प्राणियोंके सिवा अन्योंको पीनेलायक नहीं है, क्योंकि इस समुद्रका जल 'लवण-खारा' है इससे 'लवणसमुद्र' यह नाम भी सार्थक है / कालोदधि-इस समुद्रका जल काले उरदके रंग जैसा श्याम होनेसे और उसकी पूर्वपश्चिम दिशामें काल-महाकाल नामके देवोंका निवास होनेसे इस समुद्रका ‘कालोदधि' नाम भी सार्थक है। तत्पश्चात् आए समुद्र उनके साथ आए हुए द्वीपोंके समान ही नामों परसे परिचित होनेसे समुद्रोंके नामोंकी सफलता भी लगभग द्वीपके समान ही समझ लें / [71] ' अवतरण-द्वीप-समुद्रोंके अमुक नाम बताए, अब अवशिष्ट द्वीप-समुद्रोंके नाम कैसे हैं उनका निरूपण करते हैं आभरण-वत्थ-गंधे, उप्पल-तिलए य पउम-निहि-रयणे / वासहर-दह-नईओ, विजया वक्खार-कप्पिदा // 72 // कुरु-मंदर-आवासा, कूडा नक्खत्त-चन्द-सूरा य / अन्नेवि एवमाई, पसत्थवत्थूण जे नामा // 73 / / तन्नामा दीवुदही, तिपडोयाराय हुंति अरुणाई / जम्बूलवणाईया, पत्तेयं ते असंखिज्जा // 74 //
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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