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________________ 146 ] बृहत्संग्रहणीरत्न हिन्दी [ गाथा-७०-७१ बनाने के साथ साथ चिंतामणिरत्न तुल्य ऐसे इस मानवजीवनको अजस्तनवत् निरर्थक-बरबाद करने समान है। . . . ___9. अरुणदीप-इस द्वीपमें सूर्यके प्रकाश जैसे रक्तकमल विपुल प्रमाणमें हैं इसलिए, और सर्व वनरत्नमय पर्वतादिकी प्रभासे रक्त होनेसे यह नाम गुणवाचक है। तदनन्तर दसवाँ 'अरुणवर' अरुणोपपातद्वीप और ग्यारहवाँ 'अरुणावरावभास' नामका द्वीप है। . इसी तरह बारहवें कुण्डल द्वीपसे लेकर रुचक, भूजग, कुश, क्रौंच आदि द्वीप . त्रिप्रत्यवतार समझने हैं। जैसे कि बारहवाँ कुण्डलद्वीप, तेरहवाँ कुण्डलवर, चौदहवाँ कुण्डलवरावभास, 15 रुचक, 16 रुचकवर, 17 रुचकवरावभास और 18 भूजग, 19 भूजगवर, 20 भूजगवरावभास, इस तरह कुश और क्रौंचको त्रिप्रत्यवतार समझ लेना / इसमें इतना विशेष समझना कि 12 वें कुण्डलद्वीपके मध्यभागमें मानुषोत्तरकी तरह वलयाकारमें स्थित 'कुण्डलगिरि ' है अतः इस द्वीपका 'कुण्डल' नाम योग्य है। इस गिरिके मध्यभागमें चारों दिशावर्ती 4-4 (चार-चार) शाश्वत् जिनालय हैं, जिनमें परमतारक परमात्माकी शाश्वती प्रतिमाएँ शोभित हैं। इसी तरह मानुषोत्तरकी तरह 13 वें 'रुचकद्वीप 'के अतिमध्यभागमें 84 हजार : योजन ऊँचा रुचकगिरि आया है, जिससे इस द्वीपका नाम भी सफल माना जाता है / उसके ऊपर मध्यभागमें चारों दिशाओं में चार शाश्वत् जिनचैत्य हैं। इस तरह समग्र तिर्छालोकमें 'मानुषोत्तर-कुण्डल-रुचक'-ये तीन पर्वत ही वलयाकारमें हैं; शेष पर्वत अलग अलग संस्थानवाले हैं। ___ इस तरह नन्दीश्वर द्वीपका वर्णन करनेके साथ मनुष्यक्षेत्रके बाहरके जिनचैत्योंकी संक्षिप्त व्यवस्था दिखाई / / ऊपर बताये हुए गुणों से उन उन द्वीपोंके नाम सान्वर्थ हैं, अथवा तो हरएक द्वीप-समुद्रके नाम उन उन द्वीप-समुद्रोंमें रहनेवाले-निवास करनेवाले देवोंके नाम परसे रक्खे होनेसे उस प्रकार भी अन्वर्थक हैं / रुचकद्वीपसे आगेके भुजग, कुश और क्रौंचवर इत्यादि सर्व द्वीप-समुद्र उस विशिष्ट देवनिवासके नामसे ही प्रायः गुणवाचक है, ऐसा सर्वत्र सोचें / [40] अवतरण-कौनसा समुद्र किस द्वीपको घेरकर रहा है ? यह बताते हैं पढमे लवणो जलहि, बीए कालो य पुक्खराईसु / दीवेतु हुंति जलही, दीवसमाणेहिं नामेहिं // 71 // .
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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