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________________ 132 ] बृहत्संग्रहणीरत्न हिन्दी [ गाथा-६१. 60 भाग आच्छादित होते हैं और शेष रहे दो भाग जितने चन्द्रविमानको राहुका विमान कभी आच्छादित ही नहीं कर सकता और इसीलिए वह भाग चन्द्रमाकी सोलहवीं कलाके नामसे प्रसिद्ध है। अतः कहा है कि-"षोडशोंऽशः कला चिह्नम् " अथवा दूसरी रीतिसे राहुके विमानके पन्द्रह भागकी कल्पना करें अर्थात् राहु अपने एक एक १५२भागसे निरंतर चन्द्रविमानको आच्छादित करे तो पन्द्रह दिवसमें, विमानके पन्द्रह भागसे जो पन्द्रह तिथियाँ आच्छादित होती है वह इस तरह हैं कृष्णपक्षव्यवस्था-चन्द्रमाके विमानके पूर्वकल्पित (अनावरणीय ) ऐसे दो भागोंको छोड़कर साठ भागोंमेंसे चार चार भागोंको ( अथवा तो प भागोंको ) राहुके विमान अपने पूर्वकल्पित 15 भागोंके एक एक भागसे ( भागसे) कृष्णपक्षकी प्रतिपदाको राहु आच्छादित करते हैं। दूजके दिन वही राहु अपने दो भागोंसे (1) चन्द्र विमानके . आठ भागको ( भागको ) आच्छादित करता है। इस तरह प्रत्येक दिन क्रमशः चन्द्रमाके विमानके चार चार भागोंको राहु अपने विमानके एक एक भागसे ढंकता जाता है. ऐसा करते करते अमावसके दिन चन्द्रमाके समग्र बिंबको (विमानके 60 भागोंको) राहु अपने पन्द्रह भागोंसे आच्छादित करता है तब जगतमें सर्वत्र अन्धकार छा जाता है। अमावसके दिन चन्द्रमाका (60 भागका ) सकल बिंब राहुने अपने विमानके पन्द्रह भागों द्वारा ढंक दिया, जिससे जगतमें अन्धकार फैल गया; शेष बचे दो भाग तो अनावृत्त ही होनेसे इन भागोंको तिथियोंकी गिनतीमें गिनना नहीं है। इस तरह कृष्णपक्ष पूर्ण हुआ / शुक्लपक्षव्यवस्था-अब इन ढंके हुए 60 भागोंमेंसे शुक्लपक्षकी प्रतिपदाके दिन राहुका विमान (चर स्वभावसे ) पीछे खिसकता ( हटता) जाए तो वह कितना खिसके ( हटे) ? तो पूर्ववत् एक दिनमें चार भाग जितना खिसककर चन्द्रमाके च भागको राहु अपने भागसे प्रकट करे-इस तरह सुदि दूजके दिन दूसरे चार भागको प्रकट करे ( अर्थात् 62 भाग आश्रयीमेंसे तो दूजके दिन 10 भाग जितना बिंब प्रकट हो) जिसे हम भाषा-व्यवहारमें * ( दूज उगी-) दूज निकली' कहते हैं, और जिसके आधार पर मास, वर्ष आदिके शुभाशुभफलादिकी गिनती होती है। और दूजका चन्द्र क्रमशः वृद्धि पाता होनेसे, उसका दर्शन सर्व प्रकारसे वृद्धिकारक माना जाता है। इस तरह कृष्णपक्षमें प्रतिदिन चन्द्रमाके चार चार भागको राहु जिस तरह जितने-जितने भागोंको आवृत्त करता गया था, शुक्लपक्षमें वैसे ही, उतने भागोंको प्रतिदिन प्रकट करता जाता है। जिससे 152. एकम (प्रतिपदा), दूज, तीज इत्यादि तिथियोंका लोकव्यवहार चलता है, वह भी एक भागसे ढंक जाएँ तब प्रतिपदा, दो भागसे ढंक जाएँ तब दूज, इस तरह राहुके चौदह भागोंसे चन्द्र ढंक जाएँ तब चतुर्दशी इस आशयसे ही है /
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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