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________________ 128 ] बृहत्संग्रहणीरत्न हिन्दी [गाथा-५९ कोडाकोडी अर्थात् छियासठ हजार कोडाकोडी, नौसौ पचहत्तर कोडाकोडी है। यह सर्व परिवार एक चन्द्रमाका है। चन्द्रमा अधिक ऋद्धिवान् होनेसे उसका यह परिवार वर्णित किया गया है। सूर्यका परिवार चन्द्रकी तरह अलग नहीं बताया गया अतः चन्द्रका जो परिवार है वही सूर्यका भी माना जाएगा। इस तरह चन्द्र सर्व प्रकारसे महर्द्धिक और विशेष ऋद्धिवान् है, आकाशवर्ती नक्षत्रादि भी चन्द्र के परिवाररूप माने जाते हैं। सूर्य यह भी इन्द्र है अतः इन्द्र होने के कारण, उसका दूसरा स्वतन्त्र परिवार होगा ऐसा न समझे, क्योंकि 'यह परिवार चन्द्रका ही है। ऐसे कथनका तात्पर्य यह है कि--नक्षत्रादि ज्योतिषियों पर स्वामित्वकी आज्ञा चन्द्रकी होती है। अन्यथा इन्द्र तो दोनों१४६ हैं। मात्र परिवारका स्वामित्व और महर्द्धिकत्वमें अन्तर है / शंका-इतर ग्रन्थों में साथ ही ज्योतिषीगण प्रथम अश्विनीसे लेकर फिर भरणी इत्यादि क्रम मानते हैं और जैनागमों में अभिजित्से प्रारंभ करके नक्षत्रक्रम बताया जाता . है, इसका कारण क्या है ? समाधान-कारण एक ही है कि अवसर्पिणी युग आदि महान् कालभेदोंका परिवर्तन जब होता है तब उसके प्रारंभ समय पर अभिजित् नक्षत्रके योगमें ही चन्द्रका आगमन होता है। ___पुनः शंका-जब अभिजित्से लेकर क्रम दिखाते हैं तो वह नक्षत्र व्यवहार में प्रवर्तित क्यों नहीं है ? समाधान-चन्द्रमाके साथ इस अभिजित् नक्षत्रका योग स्वल्पकाल रहकर चन्द्रमा तत्काल अन्य नक्षत्रमें प्रवेश करता है अतः स्वल्पकालीन होनेसे अव्यवहार्य १४७माना है। ग्रहोंके नामों परसे अपने सात वारों के नाम रखे गये हैं। जैसे कि सूर्यके रवि ग्रह परसे रविवार, चन्द्रके सोम ग्रह परसे सोम, मंगलग्रहसे मंगल, बुधग्रहसे बुधवार, गुरुसे गुरु, शुक्रसे शुक्र, शनि परसे शनिवार / 146. जैसे एक क्षेत्रके दो राजा हों, दोनोंको राज्यसुखका भुगतान हो, इससे राजा तो दोनों कहें जाएँ, परंतु प्रजा पर आन तो उसीकी होती है जो बड़ा और ऋद्धिवान्-पुण्यशाली हो, वैसे / 147. इसके लिए 'श्री समवायांग-सूत्र' मुद्रित पत्र सत्ताइसवां देखें / [ सूरत संस्करण ]
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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