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________________ ज्योतिषीदेवोंके अतिसमृद्धिवान् परिवारका वर्णन ] गाथा 57-59 [ 127 सिंहके रूपको धारण करते हैं। दक्षिण दिशामें बड़े शरीरवाले हाथियोंके रूपको धारण करनेवाले 4000 देव होते हैं। पश्चिमदिशामें वृषभका रूप धारण करनेवाले 4000 देव और उत्तरदिशामें अश्वका रूप धारण करनेवाले भी 4000 देव हैं / ___ इस तरह सूर्य तथा ग्रहविमानोंके लिए भी समझें / केवल ग्रहके विमानोंके लिए चार हजार देवोंकी अपेक्षा दो दो हजार देव वहन करनेवाले होते हैं। नक्षत्रोंके विमानमें एक हजार देव और तारों के विमानमें पांचसौ-पांचसौ (500) देव प्रत्येक दिशामें, उपर्युक्त क्रमसे सिंहादिरूपको धारण करके विमानको वहन करने पर भी मत्तकामिनीकी तरह अर्थात् मदोन्मत्त बनी हुई स्त्री जिस तरह बहुत आभूषणोंको शरीर पर धारण करे तो भी भारको भाररूप नहीं मानकर लेकिन अधिक प्रमुदित होती है, उसी तरह ये देव विमानके भारको भाररूप न समझकर आनन्दसे वहन करते हैं / [ 57-58 ] अवतरण-इन सर्व ज्योतिषी देवोंमें अतिसमृद्धिवान् चन्द्रमा है, अतः हम उसके परिवारका वर्णन करते हैं गह अट्ठासी नक्खत्त, अडवीसं तारकोडिकोडीणं / छासद्विसहस्सनवसय,-पणसत्तरि एगससिसिन्नं // 59 // गाथार्थ-अट्ठासी (88) ग्रह, अट्ठाइस (28) नक्षत्र और छियासठ हजार नौसौ पचहत्तर (66,9,75) कोडाकोडी तारे इतना एक चन्द्रमाका परिवार होता है। // 59 // विशेषार्थ-मंगल, बुध इत्यादि १४४ग्रह अठासी प्रकारके हैं। अभिजित् आदि नक्षत्र १४५अठाईस हैं। और ताराओंकी संख्या छियासठ हजार नौसौ और पचहत्तर ( इतने ) . 144. ग्रहोंके नाम-अंगारक-विकालक-लोहित्यक-शनैश्चर-आधुनिक-प्राधुनिक-कण-कणक-कणकर्णककणवितानक-कणसंतानक-सोम-सहित-अश्वसेन-कार्योपग-कर्बुरक-अजकरक-दुदुम्भक-शंख-शंखनाभ-शंखवर्णाभकंस-कंसनांभ-कसवर्णाभ-नील-नीलावभास-रूपी-रूप्यावभास-भस्म-भस्मराशि-तिल-तिलपुष्यवर्ण-दक-दकवर्ण-काय -वंध्य-इन्द्राग्नि-धूमकेतु-हरि-पिंगलक-बुध-शुक्र-बृहस्पति-राहु-अगस्ति-माणवक-कामस्पर्श-धुर-प्रमुख -विकटविसंधिकल्प-प्रकल्प-जटाल-अरुण-अग्नि-काल-महाकाल-स्वस्तिक-सौवस्तिक-वर्धमान-प्रलंब-नित्यालोक-नित्ये द्योत - स्वयंप्रभ-अवभास-श्रेयस्कर-क्षेमंकर-आभंकर-प्रभंकर-अरज-विरज-अशोक-वीतशोक-विमल-क्तित-विवस्त्र-विशाल -शाल-सुव्रत-अनिवृत्ति-एकजटी-द्विजटी-करकरिक-राजा-अर्गल-पुष्पकेतु तथा भावकेतु, इस प्रकार अठासी - 145. अभिजित्-श्रवण-घनिष्ठा-शतभिषक्-पूर्वाभाद्रपदा-रेवती-उत्तराभाद्रपदा-अश्विनी-भरणी-कृत्तिका -रोहिणी-मृगर्षि-आर्द्रा-पुनर्वसु-पुष्य-आश्लेषा-मघा-पूर्वाफाल्गुनी-उत्तराफाल्गुनी-हस्त-चित्रा-स्वाति-विशाखाअनुराधा-ज्येष्ठा-मूल-पूर्वाषाढा और उत्तराषाढ़ा /
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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